Tag: विश्व योग दिवस

प्रकृति परमेश्वरी के प्रति सायुज्य यानी समर्पणभाव ही योग है

प्रकृति परमेश्वरी के प्रति सायुज्य यानी समर्पणभाव ही योग है

योग-साधना
अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष  डॉ. मोहन चंद तिवारी भारत के लिए यह गौरव का विषय है कि विश्व आज फिर से अपने पूर्वजों के योग चिंतन की प्रासंगिकता को स्वीकार कर रहा है.अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य होना चाहिए कि भारत के ज्ञान की इस अमूल्य धरोहर की रक्षा के लिए ऐसा कुछ करे,जिससे कि व्यक्ति और राष्ट्र दोंनों लाभान्वित हों because  और समूचा विश्व जो आज भुखमरी,कुपोषण, आर्थिक विषमता,आतंकवाद,अकाल, सूखा,ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, कोरोना महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं की विभीषिकाएं झेल रहा है उनसे भी मुक्त हो सके. तभी अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर प्रचारित किया जाने वाले सूक्ति वाक्य ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया:’की भावना को सही मायनों में विश्व पटल पर चरितार्थ किया जा सकेगा. योग भारत के सन्दर्भ में प्रकृति परमेश्वरी के साथ स...
योग ही है आज का युग धर्म

योग ही है आज का युग धर्म

योग-साधना
विश्व योग दिवस (21 जून) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र योग का शाब्दिक अर्थ सम्बन्ध (या जोड़ ) है और उस सम्बन्ध की परिणति भी. इस तरह जुड़ना , जोड़ना, युक्त होना, संयुक्त होना  जैसी प्रक्रियाएं योग कहलाती हैं जो शरीर, मन और सर्वव्यापी चेतन तत्व के बीच सामंजस्य स्थापित करती हैं. कुल मिला कर योग रिश्तों को पहचानने की एक अपूर्व वैज्ञानिक कला है जो मनुष्य को उसके अस्तित्व के व्यापक सन्दर्भ में स्थापित करती है. सांख्य दर्शन का सिद्धांत इस विचार-पद्धति की आधार शिला है जिसके अंतर्गत पुरुष और प्रकृति की अवधारणाएं  प्रमुख है. पुरुष शुद्ध चैतन्य है और प्रकृति मूलत: (जड़) पदार्थ जगत है. पुरुष प्रकृति का साक्षी होता है. वह शाश्वत, सार्वभौम, और अपरिवर्तनशील है. वह द्रष्टा और ज्ञाता है. चित्शक्ति भी वही है. प्रकृति जो सतत परिवर्तनशील है उसी से हमारी दुनिया या संसार रचा होता है. ज्योतिष हमारा शरीर भी ...