Tag: लोक साहित्य

हिमांतर के नए अंक ‘हिमालयी लोक समाज व संस्कृति’ का विमोचन

हिमांतर के नए अंक ‘हिमालयी लोक समाज व संस्कृति’ का विमोचन

साहित्‍य-संस्कृति
हिमांतर ब्यूरो, हरिद्वार-देहरादून हिमांतर का नया अंक आ गया है. हर बार की तरह यह अंक भी कुछ खास और अलग है. हिमांतर केवल एक पत्रिका नहीं, बल्कि हिमालयी सरोकारों, संस्कृति और लोक जीवन का दर्पण बनती जा रही है. अब तक के जितने भी अंक प्रकाशित हुए हैं. हर अंक ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. इस बार का अंक भी पहले के अंकों से अलग है. लेकिन, हर अंक की तरह ही इसकी आत्मा भी हिमालयी लोक समाज में बसती है. खास बात यह है कि इस बार के अंक नाम भी हिमालयी लोक समाज व संस्कृति रखा गया है. हरिद्वार में आयोजित रवांल्टा सम्मलेन में हिमांतर के नए अंक का विमोचन किया गया. हिमांतर की खास बात यह है कि इसमें हिमालयी सरोकारों और हिमालयी समाज को केवल छूया भर नहीं जाता, बल्कि गंभीरता से हर पहलू को सामने लाया जाता है. इस बार के अंक के अतिथि संपादक रचनात्मकता के लिए पहचाने जाने वाले राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता शिक्षक और साह...
पहाड़ की माटी की सुगंध से उपजा कलाकार : वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’   

पहाड़ की माटी की सुगंध से उपजा कलाकार : वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’   

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि (8 जुलाई) पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी आज उत्तराखंड की लोक संस्कृति के पुरोधा वंशीधर पाठक जिज्ञासु जी की पुण्यतिथि है. जिज्ञासु जी ने कुमाऊं और गढ़वाल के लोक गायकों, लोक कवियों और साहित्यकारों को आकाशवाणी के मंच से जोड़ कर उन्हें प्रोत्साहित करने का जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया और आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले अपने लोकप्रिय कार्यक्रम 'उत्तरायण' के माध्यम से देशभर में पहाड़ की संस्कृति का लंबे समय तक प्रचार-प्रसार किया,उसके लिए उन्हें उत्तराखंड के लोग सदा याद रखेंगे. जिज्ञासु जी को प्रारम्भ से ही कविताएं और कहानियां लिखने का बहुत शौक था. इसलिए इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी. वर्ष 1962 में उनके मित्र जयदेव शर्मा ‘कमल’ ने उन्हें आकाशवाणी में विभागीय कलाकार के रूप में आवेदन करने को कहा. उस समय 1962 में चीनी हमले के बाद भारत सरकार ने उत्तर प्रदेश के सीमां...