किताबें दुनिया की तरफ खुलने वाली खिड़कियां हैं
विनोद उप्रेती ‘यायावर’
यह किताब 1967 का संस्करण है, जो 1969 में रीप्रिंट होकर आया होगा. जब यह किताब छप रही थी तब दुनिया भर के Peace Corps volunteers नेपाल में जीवन की बेहतरी के लिए अपनी समझ के हिसाब से कुछ काम कर रहे थे. काम जो भी कर रहे
होंगे, तस्वीरें बहुत उम्दा ले रहे थे. हमारे बिल्कुल पास, सुदूर पश्चिम के बैतड़ी में भी जॉन लेन नाम का युवा घूमकर मजेदार तस्वीरें उतार रहा था. जहां जॉन फ़ोटो ले रहा था वहां से बमुश्किल डेढ़ सौ किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव में जंगल के बीच कर्नाटक से आये एक साधु ने बहुत शानदार स्कूल खोला था जहां सीरा, अस्कोट, जोहार, धारचूला के बच्चे दूर दूर से पढ़ने आते. इस स्कूल को साधु के नाम पर नारायण नगर कहा जाने लगा. इस स्कूल में हमसे पहले हमारे परिवार से हमारे चाचा पढ़ चुके थे. उनसे ही हमें यह किताब मिली.
इस किताब को ग्रेट ब्रिटेन में रिचर्ड क्ले ने सफॉल्क नाम के कस्ब...