प्रकृति व जीवन के नए सृजन का आधार है माहवारी
भावना मासीवाल
बचपन से पढ़ते और सुनते आ रहे हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है. स्वस्थ तन जो बीमारियों से कोसो दूर है और स्वस्थ मस्तिष्क जो जीवन के प्रति आशान्वित है. because स्वस्थ होना केवल तन का ही नहीं मस्तिष्क का भी अधिकार है. स्त्री के संदर्भ में स्वस्थ होना उसकी प्रोडक्टिविटी तक सीमित है. उससे अधिक स्वास्थ्य संबंधित शिक्षा उसे शायद ही कभी बचपन से अब तक मिली हो. बचपन जो अपने साथ बहुत सारे सपने संजोता है और उनमें जीता है.
आज भी याद
मुझे आज भी याद है 2002 अर्थात 18 साल पहले विद्यालय परिवेश में बारहवीं की विज्ञान की पुस्तक में रिप्रोडक्शन का एक अध्याय था और हमें कहा गया इसे आप सभी खुद पढ़ ले. because कन्या विद्यालय जैसे खुले परिवेश में पाठ का नहीं पढ़ाना उस विषय से संबंधित सामाजिक मनोविज्ञान को दिखाता है.
गांधी
स्त्री के बचपन की दुनिया फैंटेसी की होत...