Tag: माहवारी

प्रकृति व जीवन के नए सृजन का आधार है माहवारी

प्रकृति व जीवन के नए सृजन का आधार है माहवारी

आधी आबादी
भावना मासीवाल  बचपन से पढ़ते और सुनते आ रहे हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है. स्वस्थ तन जो बीमारियों से कोसो दूर है और स्वस्थ मस्तिष्क जो जीवन के प्रति आशान्वित है. because स्वस्थ होना केवल तन का ही नहीं मस्तिष्क का भी अधिकार है. स्त्री के संदर्भ में स्वस्थ होना उसकी प्रोडक्टिविटी तक सीमित है. उससे अधिक स्वास्थ्य संबंधित शिक्षा उसे शायद ही कभी बचपन से अब तक मिली हो. बचपन जो अपने साथ बहुत सारे सपने संजोता है और उनमें जीता है. आज भी याद मुझे आज भी याद है 2002 अर्थात 18 साल पहले विद्यालय परिवेश में बारहवीं की विज्ञान की पुस्तक में रिप्रोडक्शन का एक अध्याय था और हमें कहा गया इसे आप सभी खुद पढ़ ले. because कन्या विद्यालय जैसे खुले परिवेश में पाठ का नहीं पढ़ाना उस विषय से संबंधित सामाजिक मनोविज्ञान को दिखाता है. गांधी स्त्री के बचपन की दुनिया फैंटेसी की होत...
पहाड़ में महिलाओं के मासिक धर्म के वो पांच दिन

पहाड़ में महिलाओं के मासिक धर्म के वो पांच दिन

सेहत
मासिक धर्म स्वच्छता दिवस (28 मई) पर विशेष नीलम पांडेय ‘नील’ कुछ सालों पहले उत्तराखण्ड के गाँवों में कोई नई दुल्हन जब ससुराल में प्रवेश करती थी – उसकी पहली माहवारी, जिसे लोक भाषा में धिंगाड़ होना, छूत होना, अलग होना, because दिन होना या मासिक आदि नामों से जाना जाता है, के लिए एक अलग ही माहौल तैयार किया जाता था. माहवारी माहवारी के पहले दिन से ही उसे पता चल जाता था कि अब जब भी उसे माहवारी आती रहेगी, उसको माहवारी के नियमों को ओढ़ना होगा और खुद को उसमें रचना, बसाना होगा. because अपने दर्द और स्त्री सम्मान को भूलकर उसे अपनी सदियों से चली आ रही परंपराएं जीवित रखनी होंगी. शायद इन्हीं परंपराओं के कारण उस स्त्री को कभी अपने दर्द और सम्मान का अहसास भी नहीं हुआ या उसको उस समय इन नियमों के विरूद्ध जाने की हिम्मत नहीं हुई होगी. माहवारी गावों में इन प्रथाओं को खूब अच्छे से मानने वाली, ...
महिलायें, पीरियड्स और क्वारंटीन

महिलायें, पीरियड्स और क्वारंटीन

आधी आबादी
डॉ. दीपशिखा जोशी वैसे तो लगभग हमारे देश के हर हिस्से में महिलाओं को माहवारी के दिनों में अछूत माना जाता है, मगर पहाड़ी इलाक़ों में ख़ासकर बात करूँगी उत्तराखण्ड के बहुत जगहों पर इस प्रथा का बहुत सख़्ती से पालन होता है. बहुत से लोग जो अब शहरों में रहते हैं या जिनका कभी पहाड़ों से वास्ता ना रहा हो शायद विश्वास ना करें कि अभी भी या कभी इतना कठिन जीवन जीती हैं या जीती थी महिलायें! क्वारंटीन, आइसोलेशन शब्द हम में से बहुत से लोगों ने अब इस कोरोना काल में सुने होगें, मगर वो पहाड़ी महिला आज भी माहवारी के उन कठिन दिनों में रहती है पूरे 4 से 7 दिन बिलकुल अलग-थलग, उसे कोई छू नहीं सकता, अगर कोई छू लें तो गौ-मूत्र से उसकी शुद्धि की जाती है. उस महिला को इन दिनों केवल रसोई या पूजा-घर ही नहीं घर के बाक़ी हिस्सों में जाने की भी मनाही होती है. उसे मिलता है एक अलग स्थान, घर का कोई कोना, अधिकांशतया गाय को...