Tag: मानसून

उत्तराखंड में मानसून की एंट्री ने डिजास्टर जोन में बढ़ाई चिंता

उत्तराखंड में मानसून की एंट्री ने डिजास्टर जोन में बढ़ाई चिंता

देहरादून
उत्तराखंड में आने वाली आपदाओं को रोकने के लिए केवल टेक्नोलॉजी से काम नहीं चल सकता. उत्तराखंड में 200 लैंडस्लाइड एक्टिव हैं ऐसे में सरकार को ये करना चाहिए कि साल में 10 या 12 को नहीं बल्कि 50-60 का टारगेट रखना चाहिए. डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला, दून विश्वविद्यालय उत्तराखंड में लैंडस्लाइड एक बड़ी समस्या रहा है. राज्य में मानसून की एंट्री हो चुकी है. मानसून सीजन में लैंडस्लाइड अपने पीक पर होता है. मानसून की बारिश में लैंडस्लाइड रिस्क एरिया में बसाए गए लोगों को विशेष खतरा है. राज्य के संवेदनशील इलाकों में अंधाधुंध निर्माण ने बड़ी चुनौती खड़ी की हुई है. ऐसे में पर्यावरणविद और वैज्ञानिक प्रतिष्ठित संस्थानों की रिपोर्ट को नजरअंदाज करने के बजाय, एक्शन प्लान के आधार पर ठोस उपाय लागू करने की सलाह दे रहे हैं. भूस्खलन क्षेत्र नासूर बनकर उभरते हैं. भूस्खलन जोन नेताला सहित लालढांग, हेलगूगाड़ सहित सुक्क...
मेरे बगीचे के फूल

मेरे बगीचे के फूल

संस्मरण
सुनीता भट्ट पैन्यूली मानसून के पदचापों की आमद हर because तरफ़ सुनाई दे रही है. पेड़ों के अपनी जड़ों से विलगित होने का शोर शायद ही मानवता को सुनाई दे किंतु इस वर्षाकाल में कोरोना का हाहाकार और मानवता के उखड़ने और उजड़कर गिरने का शोर हर रोज़ कर्णों को भेद रहा है. मानसून इस कोरोना के वर्षाकाल में so मानव को वेंटिलेटर की दरकार है कृत्रिम  प्राण वायु मनुष्य के लिए आज कितना अपरिहार्य है इस कोरोनाकाल में हमें महसूस हो रहा है किंतु प्राकृतिक प्राण वायु जो अदृश्य रुप में हमें मिल रही है उसका ज़िक्र कहीं हमारे मानस-पटल पर धुंधलाता जा रहा है. आज उत्तराखंड में हरेला दिवस मनाया जा रहा है उल्लास कम है कोरोना की वजह से किंतु पौधे रोपे ही जायेंगे कुछ प्राचीन पुरोधाओं की स्मृतियों में कुछ उपेक्षित नदियों के तटों पर, स्कूल, बगीचों अपने घरों में श्रलाघनीय है यह और सार्थक भी. मानसून किंतु पर्यावरण ...
“जलवैज्ञानिक वराहमिहिर और उनका मानसून वैज्ञानिक ‘वृष्टिगर्भ’ सिद्धांत”

“जलवैज्ञानिक वराहमिहिर और उनका मानसून वैज्ञानिक ‘वृष्टिगर्भ’ सिद्धांत”

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-12 डॉ. मोहन चंद तिवारी वैदिक संहिताओं के काल में ‘सिन्धुद्वीप’ जैसे वैदिक कालीन मंत्रद्रष्टा ऋषियों के द्वारा जलविज्ञान और जलप्रबन्धन सम्बन्धी मूल अवधारणाओं का आविष्कार कर लिए जाने के बाद वैदिक कालीन जलविज्ञान सम्बन्धी ज्ञान साधना का उपयोग करते हुए कौटिल्य ने एक महान अर्थशास्त्री और जलप्रबंधक के रूप में राज्य के जल संसाधनों को कृषि की उत्पादकता से जोड़कर घोर अकाल और सूखे जैसे संकटकाल से निपटने के लिए अनेक शासकीय उपाय भी किए. भारतीय जलविज्ञान की इसी परंपरागत पृष्ठभूमि में छठी शताब्दी ई. में एक महान खगोलशास्त्री तथा जल वैज्ञानिक वराहमिहिर का आविर्भाव हुआ. वराहमिहिर ने अपने युग में प्रचलित जलविज्ञान की मान्यताओं का संग्रहण करते हुए अपने ग्रन्थ ‘बृहत्संहिता’ में जलविज्ञान का सुव्यवस्थित विवेचन दो भागों में विभाजित करके किया. इनमें से एक प्रकार का जल अन्तरिक्षगत जल ह...
आज भी प्रासंगिक हैं वैदिक जल विज्ञान के सिद्धात

आज भी प्रासंगिक हैं वैदिक जल विज्ञान के सिद्धात

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-8 डॉ. मोहन चन्द तिवारी देश में इस समय वर्षा ऋतु का काल चल रहा है.भारतीय प्रायद्वीप में आषाढ मास से इसकी शुरुआत  हो जाती है और सावन भादो तक इसका प्रभाव रहता है.आधुनिक मौसम विज्ञान की दृष्टि से इसे 'दक्षिण-पश्चिमी मानसूनों' के आगमन का काल कहते है,जिसे भारतीय ऋतुविज्ञान में 'चातुर्मास' या 'चौमास' कहा जाता है. इस मास में भारत का कृषक वर्ग इंद्रदेव से चार महीनों तक अच्छी वर्षा होने की शुभकामना करता है ताकि समूचे राष्ट्र को धन-धान्य की समृद्धि प्राप्त हो सके. यही वह उचित समय है जब जल भंडारण और पुराने जीर्ण शीर्ण नौलों और तालाबों की मरम्मत और साफ सफाई की जाती है ताकि वाटर हारवेस्टिंग की विधियों से वर्षा के जल का संग्रहण किया जा सके. लगभग पांच हजार वर्ष पहले सिंधुघाटी की सभ्यता में हड़प्पा काल के किसान दो प्रकार की मानसूनी वर्षा को ध्यान में रखते हुए वर्षभर में दो बार ख...