Tag: मकर संक्रान्ति

कुमाऊं में आज भी संरक्षित है ‘उत्तरैंणी’ से ‘भारतराष्ट्र’ की पहचान

कुमाऊं में आज भी संरक्षित है ‘उत्तरैंणी’ से ‘भारतराष्ट्र’ की पहचान

लोक पर्व-त्योहार
उत्तरायणी पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी कुमाऊं उत्तराखण्ड में मकर संक्रान्ति का because पर्व 'उत्तरैंणी', ‘उत्तरायणी या ‘घुघुती त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। उत्तराखंड हिमालय का क्षेत्र अनादिकाल से धर्म इतिहास और संस्कृति का मूलस्रोत रहता आया है। ज्योतिष भारत मूलतः सूर्योपासकों का देश होने के because कारण यहां मकर संक्रान्ति या उत्तरायणी का पर्व विशेष उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखाई देती है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रान्ति के दिन भगवान् भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं‚अतः इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष महाभारतकाल में भीष्म पितामह ने because अपनी देह त्यागने के लिये उत्तरायण पक्ष में पड़ने वाले मकर संक्रान्...
उत्तराखंड का परंपरागत रेशा शिल्प

उत्तराखंड का परंपरागत रेशा शिल्प

साहित्‍य-संस्कृति
चन्द्रशेखर तिवारी प्राचीन समय में समस्त उत्तराखण्ड में परम्परागत तौर पर विभिन्न पादप प्रजातियों के because तनों से प्राप्त रेशे से मोटे कपड़े अथवा खेती-बाड़ी व पशुपालन में उपयोग की जाने वाली सामग्रियों का निर्माण किया जाता था. पहाड़ में आज से आठ-दस दशक पूर्व भी स्थानीय संसाधनों से कपड़ा बुनने का कार्य होता था. ट्रेल (1928) के अनुसार उस काल में पहाड़ के कुछ काश्तकार लोग कुछ जगहों पर कपास की भी खेती किया करते थे. ज्योतिष कुमाऊं में कपास की बौनी किस्म से कपड़ा बुना जाता था. कपड़ा बुनने के इस काम को तब शिल्पकारों की उपजाति कोली किया करती थी. हाथ से बुने इस कपड़े को 'घर बुण’ के नाम से जाना जाता था. टिहरी रियासत में कपड़ा बुनने वाले बुनकरों को because पुम्मी कहा जाता था. भारत की जनगणना 1931, भाग-1, रिपोर्ट 1933 में इसका जिक्र आया है. उस समय यहां कुमाऊं के कुथलिया बोरा व दानपुर के बुनकर तथा गढ़वाल के ...
‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी हमें अपने देश के उन आंचलिक पर्वों और त्योहारों का विशेष रूप से आभारी होना चाहिए जिनके कारण भारतीय सभ्यता और संस्कृति की ऐतिहासिक पहचान आज भी सुरक्षित है. उत्तराखण्ड का 'उत्तरायणी' पर्व हो या बिहार का 'छठ पर्व' केरल का 'ओणम पर्व' because हो या फिर कर्नाटक की 'रथसप्तमी' सभी त्योहार इस तथ्य को सूचित करते हैं कि भारत मूलतः सूर्य संस्कृति के उपासकों का देश है तथा बारह महीनों के तीज त्योहार यहां सूर्य के संवत्सर चक्र के अनुसार मनाए जाते हैं. ‘पर्व’ का अर्थ है गांठ या जोड़. भारत का प्रत्येक पर्व एक ऐसी सांस्कृतिक धरोहर का गठजोड़ है because जिसके साथ पौराणिक परम्पराओं के रूप में प्राचीन कालखण्डों के इतिहास की दीर्घकालीन कड़ियां भी जुड़ी हुई हैं. पौराणिक ऐतिहासिक दृष्टि से सूर्योपासना से जुड़ा मकर संक्रान्ति या उत्तराखण्ड का 'उत्तरायणी' का पर्व भारत के आदिकालीन सूर्यवंशी भरत र...