Tag: भारतीय संस्कृति

जौनसार: अनोखी परम्परा है रहिणी जीमात   

जौनसार: अनोखी परम्परा है रहिणी जीमात   

साहित्‍य-संस्कृति
फकीरा सिंह चौहान स्नेही भारतीय संस्कृति में क्या खूब कहा गया है-  ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’ अर्थात जहां नारी की पूजा की जाती है, उसका सम्मान किया जाता है वहां देवताओं का वास होता है. मैं यह बात बड़े गर्व के साथ कह सकता हूं पहाड़ की संस्कृति के अंदर बहुत सारे ऐसे उदाहरण है जहां वास्तव में पुरुष प्रधान देश होने के बाद भी नारी को प्रथम स्थान तथा सम्मान दिया जाता है. जौनसार बावर के अंदर जो भी संस्कृति है वह अद्भुत और अनुकरणीय है. और सबसे बड़ी बात यह कि वह अपने आप मे अन्य संस्कृति से विशिष्ट है. इसी विशिष्टता के कारण इस क्षेत्र की कला संस्कृति और सभ्यता दुनिया को अपनी और आकर्षित करती है. जब भी हम जौनसार बावर की संस्कृति से परिचित होते हैं, हमें इंसानियत और मानवता की सर्वश्रेष्ठ  झलक यहां पर देखने को भली-भांति मिल जाती है. जौनसार  बाबर मे जब भी परिवार के जेष्ठ पुत्र का व...
शिक्षक की गरिमा : पुनर्प्रतिष्ठा की अनिवार्यता

शिक्षक की गरिमा : पुनर्प्रतिष्ठा की अनिवार्यता

साहित्‍य-संस्कृति
शिक्षक दिवस पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  भारतीय संस्कृति में गुरु या शिक्षक को ऐसे प्रकाश के स्रोत के रूप में ग्रहण किया गया है जो ज्ञान की दीप्ति से अज्ञान के आवरण को दूर कर जीवन को सही मार्ग पर ले चलता है. इसीलिए उसका स्थान सर्वोपरि होता है. उसे ‘साक्षात परब्रह्म’ तक कहा गया है.  आज भी सामाजिक, आध्यात्मिक और निजी जीवन में बहुत सारे लोग किसी न किसी गुरु से जुड़े मिलते हैं. because गुरु से प्रेरणा पाने और उनके आशीर्वाद से मनोरथों की पूर्ति की कामना एक आम बात है यद्यपि गुरु की संस्था में इस तरह के विश्वास को कुछ छद्म  गुरु  नाजायज़ फ़ायदा भी उठाते हैं और गुरु-शिष्य के पावन सम्बन्ध को because लांछित करते हैं. शिक्षा के औपचारिक क्षेत्र में गुरु या शिक्षक एक अनिवार्य कड़ी है जिसके अभाव में ज्ञान का अर्जन, सृजन और विस्तार सम्भव नहीं है . भारत में शिक्षक दिवस डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स...
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर उनकी मानव-दृष्टि

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर उनकी मानव-दृष्टि

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र कवि, चिन्तक और सांस्कृतिक नायक गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर साहित्य और कला के क्षेत्र में नव जागरण के सूत्रधार थे. आध्यात्म, साहित्य, संगीत और नाटक के परिवेश में पले बढे और यह सब उनकी स्वाभाविक प्रकृति और रुचि के अनुरूप भी था. बचपन से ही उनकी रुचि सामान्य और साधारण का अतिक्रमण करने में रही पर वे because ऋषि परम्परा, उपनिषद, भक्ति साहित्य, कबीर जैसे संत ही नहीं, सूफी और बाउल की लोक परम्परा आदि से भी ग्रहण करते रहे. कवि का मन मनुष्य, प्रकृति, सृष्टि और परमात्मा  के बीच होने वाले संवाद की ओर आकर्षित होता रहा. प्रकृति के क्रोड़ में जल, वायु, आकाश, और धरती की भंगिमाएं उन्हें सदैव कुछ कहती सुनाती सी रहीं. तृण-गुल्म, तरु-पादप, पर्वत-घाटी, नदी-नद और पशु-पक्षी को निहारते और गुनते कवि को सदैव विराट की आहट सुनाई पड़ती थी. अंक शास्त्र विश्वात्मा की झलक पाने के लिए कवि अपने को तै...
होली रे होली, चित्रों से बोली!

होली रे होली, चित्रों से बोली!

लोक पर्व-त्योहार
आब-ए-पाशी   मंजू दिल से… भाग-13 मंजू काला बसंत ऋतु के प्रसिद्ध एवम भारतीय संस्कृति के प्रतीक होली पर्व का अभिप्राय है-आनंद, उल्सास, अथवा हास-परिहास! इस पर्व का आगमन ही ऐसे मौसम में होता है, so जब प्रकृति की आभा पूर्ण यौवन पर रहती है! because मंद-मंद पवन से वातावरण आमोदित-प्रमोदित होता रहता है! सम्पूर्ण सृष्टि उत्साह उमंग से झूम उठती है! टेसु और सेमल के फूल ऐसे लगते हैं, जैसे नव-वधू श्रंगार कर अपने अरसिक प्रिय को रिझाने के लिए बैठी हो! बसंत ऋतु यह पर्व पूरे भारत तथा नेपाल में खूब धूमधाम और उमंग के साथ मनाया जाने वाला पर्व हैं.पर्व का प्रारम्भ होलिकादहन से होता है. अगले दिन जनमानस अबीर, गुलाल so और गीले रंगों के साथ तथा पर्यावरण प्रेमी , फूलों व हर्बल गुलाल के साथ होली के पर्व का आनंद मनाते हैं. कहीं – कहीं यह पर्व आज भी अपनी प्राचीन परम्परा के अनुरूप ही  सप्ताह भर तक मनाया जाता ह...
‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी हमें अपने देश के उन आंचलिक पर्वों और त्योहारों का विशेष रूप से आभारी होना चाहिए जिनके कारण भारतीय सभ्यता और संस्कृति की ऐतिहासिक पहचान आज भी सुरक्षित है. उत्तराखण्ड का 'उत्तरायणी' पर्व हो या बिहार का 'छठ पर्व' केरल का 'ओणम पर्व' because हो या फिर कर्नाटक की 'रथसप्तमी' सभी त्योहार इस तथ्य को सूचित करते हैं कि भारत मूलतः सूर्य संस्कृति के उपासकों का देश है तथा बारह महीनों के तीज त्योहार यहां सूर्य के संवत्सर चक्र के अनुसार मनाए जाते हैं. ‘पर्व’ का अर्थ है गांठ या जोड़. भारत का प्रत्येक पर्व एक ऐसी सांस्कृतिक धरोहर का गठजोड़ है because जिसके साथ पौराणिक परम्पराओं के रूप में प्राचीन कालखण्डों के इतिहास की दीर्घकालीन कड़ियां भी जुड़ी हुई हैं. पौराणिक ऐतिहासिक दृष्टि से सूर्योपासना से जुड़ा मकर संक्रान्ति या उत्तराखण्ड का 'उत्तरायणी' का पर्व भारत के आदिकालीन सूर्यवंशी भरत र...