बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
कविता 'करुणा' कोठारी
जिसे गर्भ में भी सम्मान न मिला,
जो कभी फूलbecause बनकर न खिला।
उसके अस्तित्व so का नया दौर चलाओ,
बेटी बचाओ,because बेटी पढ़ाओ!
जिसके होने सेbecause जगत का अस्तित्व,
उसके होने परbut छायी उदासी,
काश! उसके so दर्द का हिस्सा,
तुम्हें भी पहुंचाता चोट जरा-सी
चाहे मंदिरों में because पूजा न कराओ!
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ!
जगत
न उसका हिस्सा,because वो सिर्फ एक किस्सा,
बाबुल के आंगन so में जो खिलखिलायी,
जिसने बनाकरbut मिट्टी के खिलौने,
घर के खालीbecause कोने सजोय,
लेकर विदा!so जब चली जाए एक दिन
पीछे से दु:ख की न बातें जताओ!
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ!
जगह
काश! की because चूड़ियों की जगह,
फौलाद कीbecause जंजीरे पहनाते,
बेटे की तरहbecause उसे भी वतन पर,
हंसते—हंसते because मर—मिटना सिखाते,
कंधों पर सितारेbecause संजाकर तुम उसके
हौसले को सिर्फbecause एक बार आज...