हरिबोधनी एकादशी यानी ‘बुढ़ दिवाई’ अथवा ‘इगास’
चन्द्रशेखर तिवारी
दीपावली पर्व के बाद जो एकादशी आती है वह सामान्यतः हरिबोधनी एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस एकादशी को उत्तराखंड के गढ़वाल अंचल में 'इगास' और कुमाऊं में 'बुढ़ दिवाई' (बूढ़ी दिवाली) कहा जाता है. धार्मिक मान्यतानुसार इस दिन चार माह के चार्तुमास में क्षीरसागर में योगनिद्रा में सोने के पश्चात भगवान श्रीबिष्णु जाग्रत अवस्था में आ जाते हैं.
परम्परागत रूप से कुमाऊं अंचल में दीपावली का पर्व तीन स्तर पर मनाया जाता है. सबसे पहले कोजागरी यानी शरद पूर्णिमा की छोटी दिवाली के रूप में बाल लक्ष्मी की पूजा होती है, फिर मुख्य अमावस के दिन की दिवाली को युवा लक्ष्मी का पूजन होता है. चूंकि की इस अवधि में भगवान विष्णु निद्रा में रहते हैं सो अकेले ही माता लक्ष्मी के पदचिन्ह 'पौ' की छाप ऐपणों के साथ दी जाती है. जबकि अंतिम तीसरी चरण की दिवाली बुढ़ दिवाई (बूढ़ी दिवाली) के रुप में मनाई जाती...