Tag: बागेश्वर उत्तरायणी

कुमाऊं में आज भी संरक्षित है ‘उत्तरैंणी’ से ‘भारतराष्ट्र’ की पहचान

कुमाऊं में आज भी संरक्षित है ‘उत्तरैंणी’ से ‘भारतराष्ट्र’ की पहचान

लोक पर्व-त्योहार
उत्तरायणी पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी कुमाऊं उत्तराखण्ड में मकर संक्रान्ति का because पर्व 'उत्तरैंणी', ‘उत्तरायणी या ‘घुघुती त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। उत्तराखंड हिमालय का क्षेत्र अनादिकाल से धर्म इतिहास और संस्कृति का मूलस्रोत रहता आया है। ज्योतिष भारत मूलतः सूर्योपासकों का देश होने के because कारण यहां मकर संक्रान्ति या उत्तरायणी का पर्व विशेष उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखाई देती है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रान्ति के दिन भगवान् भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं‚अतः इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष महाभारतकाल में भीष्म पितामह ने because अपनी देह त्यागने के लिये उत्तरायण पक्ष में पड़ने वाले मकर संक्रान्...
कुली-बेगार कुप्रथा: देश के स्वतन्त्रता आंदोलन का शताब्दी वर्ष है 2021 का उत्तरायणी मेला

कुली-बेगार कुप्रथा: देश के स्वतन्त्रता आंदोलन का शताब्दी वर्ष है 2021 का उत्तरायणी मेला

बागेश्‍वर
डॉ. मोहन चंद तिवारी इस साल कुमाऊं मंडल के बागेश्वर के शताब्दी वर्ष  का ऐतिहासिक उत्तरायणी मेला भी आखिर कोरोना की भेंट चढ़ गया. जिला प्रशासन की so ओर से मेले में धार्मिक अनुष्ठान के साथ केवल स्नान और जनेऊ संस्कार की अनुमति दी गई है और मेले की शोभा बढाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों और व्यापारिक गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है. कोरोना 14,जनवरी,1921 को बागेश्वर के उत्तरायणी मेले से ही उत्तराखंड के दोनों प्रान्तों कुमाऊं और गढ़वाल में कुली-बेगार कुप्रथा को समाप्त करने के लिए बद्रीदत्त पाण्डे और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के नेतृत्व में but अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जो जनआंदोलन चला,वह समूचे भारत में अपनी तरह का पहला और अभूतपूर्व राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का शुभारंभ भी था. कोरोना शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि इस वर्ष 14 जनवरी, 2021 को बागेश्वर के उत्तरायणी मेले के दिन उत्तराखंड के स्...