Tag: बसंत-पंचमी

श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि बसंत पंचमी को नरेंद्रनगर राजमहल में होगी तय

श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि बसंत पंचमी को नरेंद्रनगर राजमहल में होगी तय

उत्तराखंड हलचल
ऋषिकेश/ नरेंद्रनगर/ : विश्व प्रसिद्ध श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि बसंत पंचमी बुधवार 14 फरवरी को नरेंद्रनगर (टिहरी) में विधि- विधान पंचांग गणना पश्चात तय होगी। महाराजा मनुजयेंद्र शाह सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह श्री बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय, राजकुमारी शिरजा शाह की उपस्थिति में राजपुरोहित आचार्य कृष्ण प्रसाद उनियाल श्री बदरीथ धाम के कपाट खुलने तिथि का विनिश्चय करेंगे और महाराजा कपाट खुलने की तिथि की घोषणा करेंगे। बीकेटीसी मीडिया प्रभारी डा.हरीश गौड़ ने बताया श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि परंपरागत रूप से राजमहल नरेंद्र नगर में तय होने के लिए 14 फरवरी को प्रात: दस बजे से धार्मिक समारोह शुरू हो जायेगा पूजा- अर्चना, पंचाग गणना पश्चात दोपहर तक कपाट खुलने की घोषित हो जायेगी इसी दिन तेलकलश यात्रा की भी तिथि तय हो जायेगी। श्री डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंच...
बसंत पंचमी: कला का सदुपयोग व आत्मनवीनीकरण…

बसंत पंचमी: कला का सदुपयोग व आत्मनवीनीकरण…

लोक पर्व-त्योहार
सुनीता भट्ट पैन्यूली एक साहित्यिक उक्ति के अनुसार,“प्राण तत्व ‘रस' से परिपूर्ण रचना ही कला है" इसी कला की प्रासंगिकता के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि सृष्टि की रचना, अनादिशक्ति ब्रहमा का अद्भुत चमत्कार है और उसमें अप्रतिम रंग,ध्वनि,वेग,स्पंदन व चेतना का स्फूरण मां सरस्वती की कलाकृति. यही कला का स्पर्श हमें उस चिरंतन ज्योतिर्मय यानि कि मां सरस्वती से एकाकार होने का अनुभूति प्रदान करता है. क्योंकि यही देवी सरस्वती ही ज्ञान, कला, विज्ञान, शब्द-सृजन, व संगीत की अधिष्ठात्री हैं.  सरस्वती मां को मूर्तरुप में ढूंढना उनकी व्यापकता को बहुत संकुचित करता है. दरअसल जहां-जहां कला अहैतुकि,नि:स्वार्थ एवं जगत कल्याण के लिए सजग व सक्रिय है सरस्वती का वहीं वास है. जहां सात्त्विक जीवन,कला के विभिन्न रूपों का अधिष्ठान, अध्यात्म, गहन चिंतन, विसंगति के वातावरण में रहकर भी आंतरिक विकास और ऊंचाई पर पहुंच...
राग-बसंत बहार  और बावरा बैजू

राग-बसंत बहार  और बावरा बैजू

ट्रैवलॉग
मंजू काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से ताल्लुक रखती हैं. इनका बचपन प्रकृति के आंगन में गुजरा. पिता और पति दोनों महकमा-ए-जंगलात से जुड़े होने के कारण, पेड़—पौधों, पशु—पक्षियों में आपकी गहन रूची है. आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं. आप ओडिसी की नृतयांगना होने के साथ रेडियो-टेलीविजन की वार्ताकार भी हैं. लोकगंगा पत्रिका की संयुक्त संपादक होने के साथ—साथ आप फूड ब्लागर, बर्ड लोरर, टी-टेलर, बच्चों की स्टोरी टेलर, ट्रेकर भी हैं.  नेचर फोटोग्राफी में आपकी खासी दिलचस्‍पी और उस दायित्व को बखूबी निभा रही हैं. आपका लेखन मुख्‍यत: भारत की संस्कृति, कला, खान-पान, लोकगाथाओं, रिति-रिवाजों पर केंद्रित है. इनकी लेखक की विभिन्न विधाओं को हम हिमांतर के माध्यम से ‘मंजू दिल से…’ नामक एक पूरी सीरिज अपने पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. पेश है मंजू दिल से… की 26वीं किस्त… म...
चलत मुसाफ़िर और बस्तापैक एडवेंचर की सार्थक पहल, उत्तराखंड की पहली स्ट्रीट लाइब्रेरी की स्थापना

चलत मुसाफ़िर और बस्तापैक एडवेंचर की सार्थक पहल, उत्तराखंड की पहली स्ट्रीट लाइब्रेरी की स्थापना

उत्तराखंड हलचल
हिमांतर ब्यूरो, ऋषिकेश  बसंत पंचमी के दिन चलत मुसाफ़िर because और बस्तापैक एडवेंचर ने साथ मिलकर दो कार्यक्रम का आयोजन किया. पहला कार्यक्रम था, उत्तराखंड की पहली स्ट्रीट लाइब्रेरी की स्थापना, जिसका उद्घाटन उत्तराखंड रत्न पद्मश्री योगी एरन ने किया. यह लाइब्रेरी तपोवन के सार्वजनिक घाट में लगाई गई है. इस मौके पर योगी एरन ने टीम की प्रसंशा करते हुए कहा, “हमें ऐसे ही युवाओं की ज़रूरत है जो सोसाइटी के बारे में सोचे. चलत मुसाफ़िर की फाउंडर मोनिका मरांडी और प्रज्ञा श्रीवास्तव, because बस्ता पैक के फाउंडर गिरिजांश गोपालन और प्रदीप भट्ट की ये मुहिम कई युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी.” घाट पर आए पर्यटकों ने लाइब्रेरी को देखते हुए टीम से ये राय साझा की, “स्ट्रीट लाइब्रेरी एक बेहतरीन मुहिम है और ऐसी मुहिमों को लगातार होना चाहिए. ऐसी मुहिम से लोगों को पढ़ने की इच्छा जागेगी जो पैसों के अभाव में पढ़ नही...
किस्सा टूटी तख्ती का

किस्सा टूटी तख्ती का

संस्मरण
‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—3 रेखा उप्रेती टूटे हुए मूँठ वाली भारी-भरकम उस तख्ती का पूरा इतिहास तो ज्ञात नहीं, पर इतना ज़रूर जानती हूँ कि पाँच भाई-बहनों को अक्षर-ज्ञान करा, जब वह मुझ तक पहुँची, तो घिस-घिसकर उसके चारों किनारे गोल हो चुके थे. पकड़ने वाली मूँठ न रहने के कारण उसके दोनों तरफ छेद करवाकर एक मजबूत पतली रस्स्सी बाँध दी गई थी, जिससे उसे कन्धे पर लटकाकर पाठशाला तक की चढ़ाई पार की जा सके. तख्ती, जिसे हम ‘पाटी’ कहते थे, उसके दो सहयोगी भी थे- सफेद 'कमेट' से भरी दवात और बाँस की कलम ... कक्षा दो तक निरक्षरता से लड़ने के लिए यही हमारे अस्त्र-शस्त्र थे. तो मेरे लिए ज्ञान की पहली सीढ़ी बनी वह पारिवारिक तख्ती, बसंत-पंचमी को ‘पाटी-पूजन’ के बाद मेरे सुपुर्द कर दी गई. अक्षत-फूल से सजी उस पाटी पर 'अ' लिखकर मैंने अपनी औपचारिक पढ़ाई प्रारम्भ की. 'प्राईमरी पाठशाला, माला' में पहले दिन तख्ती लटकाकर...