Tag: बद्रीनाथ

65 गांव के आराध्य देव राजा रघुनाथ 9 सितंबर को करेंगे बद्री—केदार धाम की यात्रा

65 गांव के आराध्य देव राजा रघुनाथ 9 सितंबर को करेंगे बद्री—केदार धाम की यात्रा

उत्तरकाशी
हिमांतर ब्यूरो, बड़कोट उत्तरकाशी मुलुकपति श्री राजा रघुनाथ जी की दो धामों की यात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं. आज यात्रा प्रबंधन समिति की बैठक के बाद श्री राजा रघुनाथ जी ने खुद ही यात्रा की तारीखों का ऐलान कर दिया है. मुलुकपति श्री राजा रघुनाथ जी 9 सितंबर को दो धामों की यात्रा के लिए रवाना होंगे. यह यात्रा कई सालों बाद हो रही है. मुलुकपति श्री राजा राघुनाथ जी के आदेशानुसार यात्रा 9 सितंबर को केदारनाथ धाम और बद्रीनाथ धाम के लिए रवाना होगी. पहले केदारनाथ धाम की यात्रा पर जाएंगे और उसके बाद बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर जाएंगे. यात्रा की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. यात्रा समिति के अनुसार यात्रा की सभी तैयारियां जोरों पर हैं. यात्रा में किसी तरह की कोई कमी ना रहे, उसके लिए सभी को जिम्मेदारी सौंपी गई है. यात्रा के लिए सभी जरूरी व्यवस्थाएं जुटाई जा रही हैं. मुलुकपति राजा रघुनाथ न...
तर्पण

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किस्से-कहानियां
कहानी एम. जोशी हिमानी तप्त कुण्ड के गर्म जल में स्नान करके मोहन की सारी थकान चली गयी थी और वह अब अपने को काफी स्वस्थ महसूस करने लगा था. तप्त कुण्ड के नीचे अलकनन्दा अत्यंत शांत एवं मंथर गति से अपने गन्तव्य की ओर बढ़ रही थी. पहाड़ों में बहने वाली नदियां वैसे तो किसी अल्हण किशोरी सी चहकती, फुदकती, बलखाती अपनी मंजिल की तरफ दौड़ लगाती हैं परन्तु बद्रीनाथ धाम में बहने वाली अलकनन्दा का यह रूप मनुष्य को अपने प्राणवान होने का अहसास कराना चाहती थी शायद. अलकनन्दा को मालूम था उसके शोर-शराबे तथा उच्छृंखलता से भगवान नारायण की तपस्या में खलल पड़ सकता है. बद्रीनाथ में आकर मनुष्य भले ही अपना संयम भूल जाये परन्तु अलकनन्दा अनादिकाल से अपनी मर्यादा तथा संयम को नहीं भूली थी. जोशीमठ से बद्रीनाथ की 40 किलोमीटर की यात्रा ने मोहन को बीमार कर दिया था. वह सोचता है उसे रात्रि विश्राम जोशीमठ में करना चाहि...
अपनेपन की मिठास कंडारी बंधुओं का ‘कंडारी टी स्टाल’

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संस्मरण
डॉ. अरुण कुकसाल चर्चित पत्रकार रवीश कुमार ने अपनी किताब 'इ़श्क में शह़र होना’ में दिल से सटीक बात कही कि ‘'मानुषों को इश्क आपस में ही नहीं वरन किसी जगह से भी हो जाता है. और उस जगह के किन्हीं विशेष कोनों से तो बे-इंतहा इश्क होता है. क्योंकि बीते इश्क की कही-अनकही बातें और सफल-असफल किस्से उन्हीं कोनों में दुबके रहते हैं. ये अलग बात है कि नये वक्त की नई चमचमाहट और आपाधापी में उन किस्सों और बातों के निशां दिखाई नहीं देते हैं. पर दिल का सबसे नाजुक कोना उन्हें ताउम्र बखूबी महसूस करता है.’' श्रीनगर गढ़वाल के 'सेमवाल पान भंडार' और उससे सटा 'कंडारी की स्टाल' क्रमशः प्रोफेसरों और छात्रों का बिड़ला कालेज से इतर का मिलन केन्द्र हुआ करता था. अक्सर किसी सेमीनार या कार्यक्रम हाल में बैठे प्रतिभागियों से ज्यादा गम्भीर चर्चा उससे ऊब कर हाल से बाहर आये प्रतिभागियों में होती है. श्रीनगर में रहते ...