मिलाई
कहानी
एम. जोशी हिमानी
वह 18 जून 2013 का दिन था वैसे तो जून अपनी प्रचण्ड गर्मी के लिए हमेशा से ही बदनाम रहा है परन्तु उस वर्ष की गर्मी तो और भी भयावह थी पारा 46 के पार जा पहुँचा था ऐसी सिर फटा देने वाली गर्मी की दोपहर में माया बरेली से लखनऊ के लिए जनरल क्लास के डिब्बे में बैठ गई थी जनरल क्लास का वह उसका पहला सफर था वह कहाँ बैठी है किन लोगो के बीच में बैठी है आज उसका उसके लिए कोई महत्व नहीं रह गया था अपनी दाहिनी हथेली को उसने साड़ी के पल्लू से पूरी तरह से ढक लिया था बरेली जेल में मिलाई की मुहर ने जैसे उसे स्वयं गुनहगार बना दिया था.
वह कनखियों से आस पास जानवरों की तरह ठुंसे हुए सहयात्रियों को कनखियों से देखती है उसे वे सारे लोग मिलाई के वक्त घंटो से इंतजार में बैठे कांतिहीन. गौरवहीन लोगों से लग रहे थे परन्तु उनमें से किसी की हथेली में मिलाई की मुहर नहीं दिख रही थी. किसी ने न अपनी हथेल...