आब कब आलै ईजा…
डॉ. रेखा उप्रेती
‘‘भलि है रै छै आमाऽ...’’ गोठ के किवाड़ की चौखट पर आकर खड़ी आमा के पैरों में झुकते हुए हेम ने कहा. ‘‘को छै तु?’’ आँखें मिचमिचाते हुए पहचानने की कोशिश की आमा ने...
‘‘आमा मी’’ हेम... ‘‘को मी’’... ‘‘अरे मैं हेम... तुम्हारा नाती..’’
आमा कुछ कहती तभी बाहर घिरे अँधेरे से फिर आवाज आयी-
‘‘नमस्ते अम्मा जी!’’
उत्तराखंड
‘‘आब तु कौ छै?’’
आमा की खीझती-सी आवाज पर हेम को जोर से हँसी आ गयी. ‘‘भीतर तो आने दे आमा , बताता हूँ. हेम ने आमा को अपने अंकवार में ले गोठ की ओर ठेला.
उत्तराखंड
गोठ में जलते चूल्हे के प्रकाश में हेम ने देखा, तवा चढ़ा हुआ है और एक भदेली में हरी साग..
‘‘अरे, तेरा खाना बन गया आमा... बहुत भूख लगी है.’’
उत्तराखंड
‘‘पैली ये बता अधरात में काँ बट आ रहा तू और य लौंड को छू त्येर दगड़?’’ आमा ने गोठ के फर्श पर दरी बिछाते हुए कहा... फिर कुछ सोचते हुए बोली ‘‘ भीतेर हिटो फ...