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पाती प्रेम की

पाती प्रेम की

कविताएं
यामिनी नयन गुप्ता इतिहास के पन्नों में जाकर कालातीत होने को अभिशप्त हो गई परीपाटी चिट्ठियों की वह सुनहरा दौर, डाकिए का इंतजार साइकिल की घंटी डाक लाया का शोर, अब नजर नहीं आतीं लाल रंग की पत्र पेटियां प्रियतम की पाती का दौर; बूढ़ी आंखों की प्रतीक्षा कुशलक्षेम का समाचार, गौने की राह तकती नवयुवती का इंतजार आपसी संवाद का जरिया, संदेशे प्रेम के खलिहानों का दौर; सुदूर कंक्रीट के शहरों में जा बसे बेटे का खत… फक्त कागज का पुर्जा ना था, पुरानी चिट्ठियों को उलट-पलटकर बार-बार पढ़ने का सुख, रोजी-रोटी की टोह में सब हो गई बातें बीते समय की धैर्य मानो गया है चुक; अब नहीं भाता किसी को इंतजार प्रतीक्षा प्रत्युत्तर की, कभी समय मिले तो लगाओ हिसाब तकनीक ने कितना लिया और क्या दिया, चिट्ठियों के जरिए बांटा गया अपनापन रिश्तो को सहेजने-सवांरने का ढंग अब कभी लौटकर नहीं आयेंग...