Tag: नीलम पांडेय

बहुत सुखद है नीलम जी के वैचारिक मंथन द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड की यात्रा अपने भीतर ही कर लेना

बहुत सुखद है नीलम जी के वैचारिक मंथन द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड की यात्रा अपने भीतर ही कर लेना

पुस्तक-समीक्षा
सुनीता भट्ट पैन्यूली हर मन की अपनी अवधारणा होती है और हर दृष्टि की अपनी मिल्कियत किंतु कुछ  इस संसार को मात्र देखते नहीं हैं इस पर प्रयोग भी करते हैं. यह भी सत्य है कि हम सभी अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार अपनी ज़िंदगी और आस- पास के परिदृश्यों का आंकलन करते हैं. नीलम जी के काव्य संकलन “हर दरख़्त में स्पंदन” पढ़कर मुझे यह अनुभूति हुई कि ध्यान देने वाली आंखों के लिए प्रत्येक क्षण का रसास्वादन करना है. एक ही क्षण की वह ध्यान मग्न आंखें विभाजित तस्वीर देखती हैं. यद्यपि जीवन का संपूर्ण वितान सौंदर्यजनक नहीं होता है इसमें कुछ हाशिए पर पड़े हुए बदरंग भी हैं जो उन्हीं के लिए ध्यातव्य है जिनके भीतर संवेदनाओं और रचनात्मकता के सुदृढ़ अंश जन्म से ही पैठ बनाकर बैठे हुए हों.  “हर दरख़्त में स्पंदन”काव्य संकलन  यही कहता है कि कविताएं  जगत और अनंत में विद्यमान दृश्यों द्वारा चैतन्य होने की वह पराकाष्ठा  ह...
जीवन सृजन में प्रेम का चेतन पक्ष…

जीवन सृजन में प्रेम का चेतन पक्ष…

सोशल-मीडिया
नीलम पांडेय ‘नील’, देहरादून प्यारे युवाओं! ये जो कुछ लोग तुम्हारे लिए प्रेम कविताएं, गीत, किस्से, कहानियां लिखते हैं, जहां तुम्हें अपने लिए उनकी कोई चाहत दिखती है, ये सब तुमको बरगलाना भी हो सकता है. जरूरी नही ये प्रेम हो, हां ये प्रेम जैसा दिखता जरूर है, प्रेम जैसा महसूस जरूर होता है पर ये महज एक आकर्षण हो सकता है, तुम्हें पता होना चाहिए कि आकर्षण की उम्र बहुत छोटी होती है, वो कब तोड़ दे, टूट जाए और खत्म हो जाए कुछ नही पता. तुम अगर किसी को प्रेम करो अथवा प्रेम गीत लिखो तो पहले धरती और आकाश की गहनता को देखो, जीवन सृजन के चेतन पक्ष को देखो, उसकी सकारात्मकता को देखो, खुद के होने को समझो, जीवन कितना अनमोल है इसे समझो, इसे बेवजह किसी पर खर्च  मत करो. तुम चाहो तो जनचेतना लिखो, तुम अगर गीत सुनो तो जनचेतना को सुनो. इसलिए ध्यान रखना, जब तक तुम खुद से बेइंतहां प्रेम न करने लग जाओ, प्रकृति के कण-क...
मित्रता दिवस : सार्थक कल्पनाओं से दुनिया बेहतरीन दिखती है

मित्रता दिवस : सार्थक कल्पनाओं से दुनिया बेहतरीन दिखती है

साहित्‍य-संस्कृति
नीलम पांडेय ‘नील’, देहरादून साथी... समाज जिस गतिशीलता के साथ आगे बढ़ रहा है, वहां मित्रता के मायने में कई छुपी हुई महत्वाकांक्षाएं जन्म ले चुकी होती हैं. सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, तकनीकी चुनौतियां हमारे व्यक्तिगत संबंधों पर भारी पड़ रही हैं, किंतु हमें मित्रता की मौलिक अवधारणा को बचाना होगा. आज तक हमने जितनी भी बातें की होंगी, वहां हम स्वयं के निजी स्वार्थो में बंधे रहे, हमारी मित्रता समय की धारा में बह रही होती है, किंतु समय को समृद्ध करना भी हमारी जिम्मेदारी होती है. समृद्ध समय हमारे हिस्से और हमारी अनगिनत पीढ़ियों के हिस्से में एक भयमुक्त वातावरण तैयार करेगा, जहां मित्रता को ईश्वर के समतुल्य रखा जाएगा. हमारी चाहना में एक समृद्ध मित्रता भविष्य को बदलने की क्षमता रखेगी. एक दिन धर्म का नाम मित्र होगा. एक दिन समाप्त हो जाएंगे सारे विश्व युद्ध, एक दिन सभी गृह युद्धों का स्वरूप बदल जाएगा....
कौओं को विशेष व्यंजन खिलाने का अनोखा त्यौहार

कौओं को विशेष व्यंजन खिलाने का अनोखा त्यौहार

लोक पर्व-त्योहार
नीलम पांडेय नील, देहरादून आ कौवा आ, घुघुती कौ बड़ खै जा मैकेणी म्येर इजैकी की खबर दी जा. आ कौवा आ, घुघुती कौ बड़ ली जा मैकेणी म्येर घर गौं की खबर दी जा. आ कौवा,अपण दगड़ी और लै पंछी ल्या, सबुकैं घुघुती त्यारै की खबर दी आ. इस बार घुघुती के प्रचलित गीत को एक नए सुर में गाना चाहती हूं, मेरी उम्र के असंख्य बच्चे जो आज खाने कमाने की दौड़ में बड़े - बड़े महानगरों में व्यस्त हो गए हैं, और व्यस्क होकर जीवन की ढलान में बढ़ रहे हैं, वे इन त्योहारों की आहट पर अपने देश, गांव लौट जाना चाहते हैं. जैसे पक्षी लौट आते हैं दूरदराज से वापस अपने देश. घुघुती के त्योहार के दिन हम महानगरों में किसी चिड़िया को खोजने लगते हैं.  कौवे को बुलाने की कोशिश करते हैं....पर वे नही दिख रहे हैं. जब हम छोटे थे ....आज के दिन असंख्य कौवे घर के आसपास घूमने लगते थे और घर की मुंडेर, आंगन में घुघुती बड़े रखते ही फुर्र से उठ...
हाईस्कूल की पंच वर्षीय योजना

हाईस्कूल की पंच वर्षीय योजना

समाज
नीलम पांडेय नील, देहरादून नब्बू, नाम था उसका, उसकी मां उसके नॉवेल के चित्रों से समझ जाती थी, बेटा किताब नहीं, नॉवेल पढ़ता है इसलिए नब्बू, अपनी नॉवेल पर अखबार की जिल्द चढ़ाने लगा था, तबसे मां समझने लगी, बेटा किताब पढ़ने लगा है. मां अकसर कहती थी, because मेरा नबुवा तो दिन रात, गुटके जैसी मोटी-मोटी किताब पढ़ कर इम्तहान देता है, लेकिन खप्तिये मास्टर इसको नंबर ही नही देते हैं. कई सालों से नबूवा हाईस्कूल में आगे ही नहीं बढ़ रहा था. फेल होने के बाद भी वो मुस्कराया करता था, उसकी मां उसे पूरा दिन गाली देती थी, पिता बात करना बन्द कर देते थे, लेकिन वो सब कुछ आराम से सुनते हुए उनके काम में हाथ बटाया करता था. ज्योतिष कुछ दिनों बाद, जब स्थिति सामान्य हो जाती थी, बच्चे पास होकर अपनी नई किताबों में जिल्द लगा रहे होते थे, वो अपनी पुरानी फटी हुई किताबों को उसी जोश से सजाने लगता था. पुराने बैग को धोकर च...