सब मज़ेदारी है! कथा नीलगढ़- अनन्त गंगोला
डॉ. अरुण कुकसाल
‘तन ढंकने को कपड़े नहीं, सिर छिपाने को मुकम्मल छत नहीं, दो वक्त के चूल्हे के जलने का कोई सिलसिला नहीं, पर इस सब के बीच, ‘क्या हाल है?’ का जवाब ‘सब मजे़दारी है’. आखिर कैसे हो सकता है?’ इस बात ने नीलगढ़ में आकर रहने का जैसा निमंत्रण दे दिया’. (भूमिका पृष्ठ-10)
दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन से आये शोधार्थी अनन्त की पहली मुलाकात जब नीलगढ़ गांव के लोगों से हुई तो वह आश्चर्यचकित था कि हर प्रश्न/बात का स्वाभाविक उत्तर ‘सब मज़ेदारी है!’ कैसे हो सकता है? इस सवाल के जवाब को जानने-समझने के लिए वह नीलगढ़ और धुंधवानी गांव के लोगों और बच्चों के साथ सन् 1991 से 1993 तक अभिनव प्रयोग करता चला गया.
लेखक के ही शब्दों में ‘इस गांव ने मुझे ‘बिल्मा’ (मोह लिया) लिया और मैं वहीं रह गया.’
‘गोण्ड आदिवासी समाज के जीवन में शासन की विकास एवं कल्याण की योजनाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन’ के सिलसिले में सन् 199...