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‘विकट से विशिष्ट’ जीवन-यात्रा

‘विकट से विशिष्ट’ जीवन-यात्रा

स्मृति-शेष
पूर्णानन्द नौटियाल (सन् 1915 - 2001) डॉ. अरुण कुकसाल बचपन में मिले अभावों की एक खूबी है कि वे बच्चे को जीवन की हकीकत से मुलाकात कराने में संकोच या देरी नहीं करते. घनघोर आर्थिक अभावों में बीता बचपन जिंदगी-भर हर समय जीवनीय जिम्मेदारी का अहसास दिलाता रहता है. उस व्यक्ति को पारिवारिक-सामाजिक उत्तरदायित्वों के निर्वहन करते हुए ही अपने व्यक्तिगत विकास की गुंजाइश का लाभ उठाना होता है. जीवनीय 'अभावों के प्रभावों' में उस व्यक्ति के साथ अन्य मनुष्यों का व्यवहार सामान्यतया तटस्थता के भावों को लिए रहता है. यह सामाजिक तटस्थता अक्सर निष्ठुरता के रूप में मुखरित होती है. लेकिन वह व्यक्ति अपने प्रति इस सामाजिक संवेदनहीनता को सहजता से ही ग्रहण करता है. एक शताब्दी पूर्व हमारे समाज में जन्मे पूर्णानंद नौटियाल जी को मेरी तरह आप भी नहीं जानते होंगे. यह स्वाभाविक भी है. क्योंकि हमारे परिवार-समाज में...