Tag: देवदार

सड़क के लिए देवदार के 1000 पेड़ों को काटने की तैयारी!

सड़क के लिए देवदार के 1000 पेड़ों को काटने की तैयारी!

उत्तराखंड हलचल
जागेश्वर:मास्टर प्लान के तहत हो रहे सड़क चौड़ीकरण के लिए करीब एक हजार देवदार के पेड़ों को काटने की तैयारी की जा रही है। कार्यदायी संस्था लोक निर्माण विभाग ने चौड़ीकरण की जद में आ रहे पेड़ों का चिह्नीकरण करना शुरू कर दिया है। हालांकि स्थानीय लोग इसके विरोध में उतर आए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वह देवदार के पेड़ों की पूजा करते हैं। जागेश्वर धाम देवदार के जंगल के बीच स्थित है। इसे दारूक वन के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यही दारुक वन भगवान शिव का निवास स्थान है। जागेश्वर धाम के विकास के लिए मास्टर प्लान को धरातल पर उतारा जा रहा है। मास्टर प्लान के तहत आरतोला से जागेश्वर तक तीन किमी सड़क का चौड़ीकरण होना है। टू-लेन सड़क बनाने के लिए इसकी जद में आ रहे एक हजार से अधिक देवदार के पेड़ों का कटान होना है। स्थानीय लोगों और व्यापारियों ने सोमवार को बैठक में कहा कि यहां स्थित देव...
वो गाँव की लड़की

वो गाँव की लड़की

साहित्यिक-हलचल
एम. जोशी हिमानी गाँव उसकी आत्मा में इस कदर धंस गया है कि शहर की चकाचौंध भी उसे कभी अपने अंधेरे गाँव से निकाल नहीं पाई है वो गाँव की लड़की बड़ी बेढब सी है खाती है शहर का ओढ़ती है शहर को फिर भी गाती है गाँव को उसके गमले में लगा पीपल बरगद का बौनसाई जब पंखे की हवा में हरहराता है और उसके बैठक में एक सम्मोहन सा पैदा करता है वो गाँव की लड़की खो जाती है चालीस साल पहले के अपने गाँव में और झूलने लगती है अपने खेत में खड़े बुजुर्ग मालू के पेड़ की मजबूत बाहों में पड़े प्राकृतिक झूलों में अब किसी भी गाँव में उसका कुछ नहीं है सिवाय यादों के वो लड़की थी इसलिए किसी खसरा-खतौनी में उसका जिक्र भी नहीं है शहर में ब्याही वो गाँव की लड़की अपनी साँसों में बसाई है अब तक काफल, बांज, चीड़-देवदार बड.म्योल उतीस के पेड़ों को सभी नौलों धारों गाड़-गधेरों और बहते झरनों को ...
खाँकर खाने चलें…!!

खाँकर खाने चलें…!!

संस्मरण
‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—11 रेखा उप्रेती शुरू जाड़ों के दिन थे वे. बर्फ अभी दूर-दूर पहाड़ियों में भी गिरी नहीं थी, पर हवा में बहती सिहरन हमें छू कर बता गयी थी कि खाँकर जम गया होगा… इस्कूल की आधी छुट्टी में पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाले सीनियर्स ने प्रस्ताव रखा “हिटो, खाँकर खाने चलते हैं…” तो आठ-दस बच्चों की टोली चल पड़ी खाँकर की तलाश में… इस्कूल हमारा पहाड़ के सबसे ऊँचे शिखर पर था और खाँकर मिलता था एकदम नीचे तलहटी पर बहते गधेरे में… वह भी देवदार के घने झुरमुट की उस छाँव के तले, जहाँ सूरज की किरणों का प्रवेश जाड़ों में तो निषिद्ध ही होता… अपनी पहाड़ी से कूदते-फाँदते नीचे उतर आए हम….उसके लिए हमें बनी-बनाई पगडंडियों की भी ज़रुरत नहीं थी. सीढ़ीदार खेतों से ‘फाव मारकर’ हम धड़धड़ाते हुए उतर आते थे. गाँव की ओर जाने वाली पगडंडी पहले ही छोड़ दी, कोई देख ले तो खाँकर का ख़्वाब धरा रह जाए…… तलहटी पहुँचक...