दिल्ली जन्नूहू, हेर्या जन
लच्छू की रईसी के किस्से
कमलेश चंद्र जोशी
बात तब की है जब दूर दराज गॉंव के लोगों के लिए दिल्ली सिर्फ एक सपनों का शहर हुआ करता था. उत्तराखंड के लगभग हर पहाड़ी परिवार का एक बच्चा फौज में होता ही था बाकी जो भर्ती में रिजेक्ट हो जाते वो या तो आवारा घूमते बीड़ी फूंकते नजर आते या फिर दिल्ली जाने की जुगत लगाते. उस समय में गॉंव के इक्का—दुक्का लड़के ही दिल्ली में नौकरी करते थे जिस वजह से गॉंव में उनकी पूछ और आव-भगत खूब होती थी. अलबत्ता पूरे गॉंव में मालूम किसी को नहीं होता था कि असल में लड़के दिल्ली में करते क्या हैं लेकिन बातें कहोगे तो ऐसी कि गॉंव के नाकारा निकम्मे लड़कों को मिसाल के तौर पर इन्हीं दिल्ली वाले लड़कों के उदाहरण दिये जाते थे. ईजा-बाज्यू तो बात-बात में कई बार कह देते थे “तुमर चेल त कति समझदार भै हो, टाइम में दिल्ली नौकरी में लाग गौ. एक हमर लाट छ दिन भर फेरिने में भै बस” (तुम्...