गर्मियों की छुट्टी और रोपणी की बखत
ममता गैरोला
जून की भीषण गर्मी में पहाड़ स्वर्ग की सी अनुभूति है. खेतों की लहलहाती हवा, धारा (पानी का स्रोत) से बहता ठंडा पानी, लोगों में आपसी मेलजोल और साथ ही सांस्कृतिक रीति-रिवाज पहाड़ों की जीवन शैली का अद्भुत दर्शन कराती है और इस अनुभूति को हम सिर्फ तब ही नहीं महसूस करते जब हम अपने गांव में होते हैं बल्कि तब भी महसूस करते हैं जब हम शहरों में कहीं दो कमरों घर में हो या फिर आलिशान फ्लैट में रह रहे हों, एक बार बस बात शुरू हो जाने पर ही उन यादों में डूब जाते हैं. फिर आज भी मन है कि गांव जाने को आतुर सा होने लगता है.
एक वक़्त हुआ करता था जब गर्मी की छुट्टियों में कहीं जाने का मतलब सिर्फ दादी और नानी के घर जाना होता था. और वहां जाना किसी फॉरेन ट्रिप से कम नहीं होता था न जाने कितनी ही मौज- मस्ती और कितने ही एडवेंचर किये हैं हमने वहां, अक्सर दिन में खाना- खाने के बाद कपड़े लेकर गाड़-गधेरा...