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बामणों के घर में खुखरी थोड़ी होने वाली हुई

बामणों के घर में खुखरी थोड़ी होने वाली हुई

संस्मरण
पहाड़ की शैतानियां-1 ललित फुलारा पहाड़ की स्मृतियों के नाम पर मेरे पास शैतानियों की भरमार है. उट-पटांग किस्से हैं, जिनको स्मरण कर बस हंसी आती है. यकीन नहीं होता, बचपन इतना जिद्दी, उजड्ड, उद्दंड so और असभ्य रहा. जिद्दीपन अब भी है, पर शैतानियां साथ छोड़ गई हैं. उद्दंडता के बाद बचपन में पड़ने वाली ईजा की मार और गालियां अब भी आंचल-सी लिपटी महसूस होती हैं. उंगलियों से ईजा की धोती के पल्लू को लपेटकर सिसकियां भरने so वाले दृश्य जेहन में उभर आते हैं. ईजा जितनी बार गुस्सा होती, सिर फोड़ने और कमर तोड़ने की ही बात करती! पहाड़ की संस्कृति में इन दो गालियों का अपना ही रसास्वादन है. विरला ही होगा जिसकी ईजा ने उस पर इन गालियों का स्नेह न बरसाया हो. कमर कमर के मामले में, मैं सौभाग्यशाली रहा पर सिर बहुत बार फूटा. ऐसा फूटा हुआ है कि अगर कपाल के बाल दान कर दिए जाएं, तो घाव के निशान प्रामाणिकता के...