ईमानदार समीक्षा-साहित्य का सच्चा पाठक और लेखक
ललित फुलारा
एक जानकार काफी दिनों से अपनी किताब की समीक्षा लिखवाना चाहते थे. अक्सर सोशल मीडिया लेटर बॉक्स पर उनका संदेश आ टपकता. 'मैं उदार और भला आदमी हूं' यह जताने के लिए उनके संदेश पर हाथ जोड़ तीन-चार दिन बाद मेरी जवाबी चिट्ठी भी पहुंच जाती. यह सिलसिला काफी लंबे वक्त का है. इतना धैर्यवान व्यक्ति मैंने अभी तक नहीं देखा था. एक ही संदेश हर दूसरे दिन ईमोजी की संख्या बढ़ाकर मुझे मिलता और हर तीसरे-चौथे दिन विनम्रतापूर्ण नमस्कार वाली इमोजी की संख्या बढ़ाकर मेरा जवाब उन तक पहुंचता. बीच-बीच में कभी-कभार वो मैसेंजर से फोन भी कर लिया करते.
एक शाम फिर दूरभाष. बड़े अधिकार भाव से बोले- 'कुछ ही शब्द लिखकर पोस्ट कर दीजिए.' मैंने उनको समझाना चाहा कि मैं किताब नहीं पढ़ता. और बिना पढ़े शेयर नहीं करता. न ही आदेश पर लिखता हूं और न ही विनती पर. इस पर उनका अधिकार भाव थोड़ा लचीला हुआ और बोले. 'मुझे लगता ...