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अनाज भंडारण की अनूठी परम्परा है कोठार

अनाज भंडारण की अनूठी परम्परा है कोठार

उत्तराखंड हलचल
आशिता डोभाल कोठार यानी वह गोदाम जिसमें अनाज रखा जाता है, अन्न का भंडारण का वह साधन जिसमें धान, गेंहू, कोदू, झंगोरा, चौलाई या दालें सालों तक रखी जा सकती है. कोठार में रखे हुए इन धनधान्य के खराब होने की संभावना न के बराबर होती है. कोठार को पहाड़ी कोल्ड स्टोर के नाम से जाना जाता है, जिसमें धान, गेंहू, कोदू, झंगोरा, चौलाई या दालें सुरक्षित रखी जाती है. कोठार अथवा कुठार जो कि मुख्यतः देवदार की लकड़ी के बने होते हैं और ये सिर्फ भंडार ही नहीं हमारी संस्कृति के अभिन्न अंग भी रहे हैं, इस भंडार में हमारे बुजुर्गों ने कई पीढ़ियों तक अपने अनाजों और जरूरत के सारे साजो-सामान रखे हैं. ये दिखने में जितने आकर्षक होते हैं उतने ही फायदेमंद भी. पहाड़ों में पुराने समय में लोग सिर्फ खेती किसानी को ही बढ़ावा देते थे और उसी खेती किसानी के जरिए उनकी आमदनी भी होती थी वस्तु विनिमय का जमाना भी था तो लोग बाज़ार और...
च्यला देवी थान हैं ले द्वी बल्हड़ निकाल दिए

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संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—32 प्रकाश उप्रेती आज बात-"उमि" की. कच्चे गेहूँ की बालियों को आग में पकाने की प्रक्रिया को ही 'उमि' कहा जाता था. गेहूँ कटे और उमि न पके ऐसा हो ही नहीं सकता था. उमि पकाने के पीछे का एक भाव 'तेरा तुझको अर्पण' वाला था. साथ ही गेहूँ कटने की खुशी भी इसमें शामिल होती थी. गेहूँ काटना तब एक सामूहिक प्रक्रिया थी. गाँव वाले मिलकर एक -दूसरे के 'ग्यों' (गेहूँ) काटते थे. बाकायदा तय होता था कि "भोअ हमर ग्यों काट ड्यला, आघिन दिन त्यूमर" (कल हमारे गेहूँ काट देंगे, उसके अगले दिन तुम्हारे). सुबह से लेकर शाम तक सब खेत में ही रहते थे. वहीं सबके लिए खाना-पानी-चाय जाती थी. 'पटोक निसा' (खेत की दीवार की तरफ) बैठकर सब साथ में खाते थे. गाँव में जिसकी भी भैंस दूध देने वाली होती थी उनके वहाँ से छाँछ आ जाती थी. छाँछ पीने के बाद ईजा लोग बोलते थे- "गोअ तर है गो, त्यूमर भैंस रोज...