Tag: गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’

‘गिर्दा’: उत्तराखंड आंदोलन के जनकवि और युगद्रष्टा चिंतक भी

‘गिर्दा’: उत्तराखंड आंदोलन के जनकवि और युगद्रष्टा चिंतक भी

स्मृति-शेष
गिर्दा' की 11वीं पुण्यतिथि पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी     22 अगस्त को उत्तराखंड आंदोलन के जनकवि, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की 11वीं पुण्यतिथि है. गिर्दा उत्तराखंड राज्य के एक आंदोलनकारी जनकवि थे,उनकी जीवंत कविताएं अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देतीं हैं. वह लोक संस्कृति के इतिहास से जुड़े गुमानी पंत तथा गौर्दा का अनुशरण करते हुए ही राष्ट्रभक्ति पूर्ण काव्यगंगा से because उत्तराखंड की देवभूमि का अभिषेक कर रहे थे. हर वर्ष मेलों के अवसर पर देशकाल के हालातों पर पैनी नज़र रखते हुए झोड़ा- चांचरी के पारंपरिक लोककाव्य को उन्होंने जनोपयोगी बनाया. इसलिए वे आम जनता में ‘जनकवि’ के रूप में प्रसिद्ध हुए. संसाधनों आंदोलनों में सक्रिय होकर कविता करने तथा कविता की पंक्तियों में जन-मन को आन्दोलित करने की ऊर्जा भरने का गिर्दा’ का because अंदाज निराला ही था. उनकी कविताएं बेहद व्यंग्यपूर्ण तथा तीर क...
असहमति के साथ चलने वाला साथी

असहमति के साथ चलने वाला साथी

स्मृति-शेष
प्रखर समाजवादी एवं उत्तराखंड राज्य आंदोलन के शिल्पी बिपिन त्रिपाठी की जयन्ती (23 फरवरी) पर विशेष चारु तिवारी अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट विकासखंड में एक छोटी सी जगह है बग्वालीपोखर. वहीं इंटर कालेज में हम लोग पढ़ते थे. कक्षा नौ में. यह 1979 की बात है. पिताजी यहीं प्रधानाचार्य थे. उन्होंने बताया कि पोखर में विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. डीडी पंत आने वाले हैं. पिताजी कर्इ बार उनके बारे में बताते थे. जब वे डीएसबी कालेज, नैनीताल because में पढ़ते थे तब पंतजी शायद वहां प्रवक्ता बन गये थे. हम गांवों के रहने वाले बच्चे. हमारे लिये वैज्ञानिक जैसे शब्दों का मतलब ही किसी दूसरे लोक की कल्पना थी. बड़ी उत्सुकता हुई उन्हें देखने की. बग्वालीपोखर उस समय बहुत छोटी जगह थी. बस कुछ दुकानें. एक रामलीला का मैदान. पुराने पोखर में. उसके सामने एक धर्मशाला. उसके बगल में जशोदसिंह जी की दुकान. वहीं पर एक चबूतरा. ...
जैंता एक दिन तो आलो, ऊ दिन यो दुनी में…

जैंता एक दिन तो आलो, ऊ दिन यो दुनी में…

स्मृति-शेष
'गिर्दा’ की पुण्यतिथि (22अगस्त) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी 22 अगस्त को उत्तराखंड आंदोलन के जनकवि, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की 10वीं पुण्यतिथि है. गिर्दा उत्तराखंड राज्य के एक आंदोलनकारी जनकवि थे, उनकी जीवंत कविताएं अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देतीं हैं. वह लोक संस्कृति के इतिहास से जुड़े गुमानी पंत तथा गौर्दा का अनुशरण करते हुए ही राष्ट्रभक्ति पूर्ण काव्यगंगा से उत्तराखंड की देवभूमि का अभिषेक कर रहे थे. हर वर्ष मेलों के अवसर पर देशकाल के हालातों पर पैनी नज़र रखते हुए झोड़ा- चांचरी के पारंपरिक लोककाव्य को उन्होंने जनोपयोगी बनाया. इसलिए वे आम जनता में ‘जनकवि’ के रूप में प्रसिद्ध हुए. आंदोलनों में सक्रिय होकर कविता करने तथा कविता की पंक्तियों में जन-मन को आन्दोलित करने की ऊर्जा भरने का अंदाज 'गिर्दा’ का निराला और रंगीला भी था. उनकी कविताएं बेहद व्यंग्यपूर्ण तथा तीर की तरह घायल करने ...