याद करना लोक-संस्कृति के अध्येता को
डॉ. गोविन्द चातक की पुण्यतिथि (9 जून, 2007) पर विशेष
चारु तिवारी
‘‘सदानीरा अलकनंदा की तरल तरंगों ने राग और स्वर देकर, उत्तुंग देवदारु के विटपों ने सुगंधिमय स्वाभिमान देकर और हिमवन्त की सौंदर्यमयी प्रकृति ने अनुभूतियां प्रदान कर गोविन्द चातक की तरुणाई का संस्कार किया है. इसलिये चातक प्रकृत कवि, कोमल भावों के उपासक, लोक जीवनके गायक और शब्द शिल्पी बने हुये हैं.’’
(सम्मेलन पत्रिकाः लोक संस्कृति अंक)
गढ़वाल की लोकविधाओं के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में ही उन्होंने अपना जीवन लगा दिया. एक गहन अध्येता, संवेदनशील लेखक, प्रतिबद्ध शिक्षक, कुशल नाटककार, गूढ़ भाषाविद, प्रबुद्ध आलोचक, लोक विधाओं के शोधकर्ता के रूप में उनका योगदान हमेशा याद किया जायेगा. गढ़वाली भाषा और साहित्य के एक ज्ञानकोश के रूप में हम सब उन्हें जानते हैं.
वे अपने आप में एक पहाड़ थे. लोक साहित्य और लोकभाषा के. लोक वि...