Tag: गढ़वाली नाटक

गढ़वाली नाटक अपणु-अपणु सर्ग का सफल मंचन

गढ़वाली नाटक अपणु-अपणु सर्ग का सफल मंचन

कला-रंगमंच
सी एम पपनैं नई दिल्ली. 3 अक्टूबर की सायं मंडी हाउस स्थित एलटीजी सभागार मे उत्तराखंड के प्रवासियों की दिल्ली स्थित ख्यातिरत सांस्कृतिक संस्था 'दि हाई हिलर्स' ग्रुप द्वारा गढ़वाली, कुमांऊनी एवं जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली सरकार के संयुक्त तत्वाधान मे हरि सेमवाल निर्देशित व सुरेश नौटियाल एवं दिनेश बिजल्वाण द्वारा उत्तराखंड की पृष्ठभूमि मे‌ नवरचित गढ़वाली नाटक 'अपणु-अपणु सर्ग' का सफल मंचन खचाखच भरे सभागार मे किया गया. मंचित नाटक का श्रीगणेश गढ़वाली, कुमांऊनी एवं जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली सरकार सचिव संजय गर्ग तथा 'दि हाई हिलर्स' ग्रुप संस्था सदस्यों मे प्रमुख दिनेश बिजल्वाण, रमेश घिल्डियाल, रविंद्र रावत, राजेन्द्र चौहान, संयोगिता ध्यानी इत्यादि द्वारा दीप प्रज्वलित कर तथा नाटक रचयिता सुरेश नौटियाल द्वारा मंचित नाटक के संक्षिप्त सार के बावत अवगत करा कर किया गया. सीमित परिवेश मे मंचि...
‘उत्तरायण’ के पर्याय थे बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’

‘उत्तरायण’ के पर्याय थे बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’

स्मृति-शेष
हमारी लोक विधाओं को नया आयाम देने वाले बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ जी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए चारु तिवारी उन दिनों हम लोग बग्वालीपोखर में रहते थे. यह बात 1976-77 की है. आकाशवाणी लखनऊ से शाम 5.45 बजे कार्यक्रम आता था- ‘उत्तरायण.’ शाम को  ईजा स्कूल के दो-मंजिले की बड़ी सी खिड़की में बैठकर रेडियो लगाती. हम सबका यह पसंदीदा कार्यक्रम था. हम किसी भी हालत में इसे मिस नहीं होने देते. हमें नहीं पता था कि इस कार्यक्रम को संचालित करने वाले हमारे ही बगल के गांव नहरा (कफड़ा) के वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ जी हैं. बहुत बाद में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को जानने का मौका मिला. उन्होंने कुमाउनी भाषा और साहित्य के लिये अपना जो अमूल्य योगदान दिया उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. जिज्ञासु जी ने आकाशवाणी लखनऊ में रहते ‘उत्तरायण’ के माध्यम से जिस तरह कुमाउनी-गढ़वाली भाषा के संवर्धन और नाटकों की शुरुआत की उस...