कुमाऊंनी दुदबोलि को सांस्कृतिक पहचान से जोड़ा मथुरादत्त मठपाल ने
श्रद्धांजलि लेख
डॉ. मोहन चंद तिवारी
उदेख भरी ह्यूं- हिंगवन संग
करछी गुणमुण छीड़ा जौपन.
निल अगास’क छैल कैं नित,
भरनै रौछीं बादो जौपन..
सल्ल बोटन में सुसाट पाड़नै
चलछी मादक पौन जती.
रतन भरी ढै-डुडण्रा छी,
ढै़-डुडण्रा भरी छी सकल मही,
बसी हिमांचल’क आंचव में छी,
मयर घर लै यती कईं..
बहुत दुःख के साथ कहना पड़ता है कि उपर्युक्त पंक्तियों के लेखक हिमालय के आंचल में सदा जीने वाले,हिमालय के नीले आकाश की बदलियों और वहां नदियों के सुसाट को सुनने वाले, कुमाऊंनी साहित्य को समय की धार देने वाले साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित सहृदय साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल जी आज आज हमारे बीच नहीं रहे. अभी पिछले साल ही मैंने इन पंक्तियों के माध्यम से, 29 जून, 2020 को अपने इस वरिष्ठ साहित्यकार का 80वां जन्मदिन मनाया था. तब पता नहीं था कि कुमाऊंनी साहित्य को सांस्कृतिक पहचान से जोड़ने वाले इस यशस्वी सा...