Tag: काव्य संग्रह

प्रेम, मनोभाव और विद्रोह की सशक्त अभिव्यक्ति है – ‘बाकी हूँ अभी’  

प्रेम, मनोभाव और विद्रोह की सशक्त अभिव्यक्ति है – ‘बाकी हूँ अभी’  

पुस्तक-समीक्षा
नीलम पांडेय ‘नील’, देहरादून डॉ. ईशान पुरोहित का काव्य संग्रह एक सौ ग्यारह (111) कविताओं और ग़ज़लों का दावतनामा है. डॉ. ईशान पुरोहित का काव्य संग्रह 'बाकी हूँ अभी' प्रेम, मनोभाव और विद्रोह की एक सशक्त अभिव्यक्ति है. इस संग्रह की कविताएँ प्रेम के विविध आयामों को समेटे हुए हैं- कभी आत्ममंथन, कभी समर्पण, तो कभी मनुहार और शिकायतों के रूप में. यह प्रेम केवल रोमांटिक भावनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के अनुभवों, मानवीय संवेदनाओं और अस्तित्व के संघर्षों से भी जुड़ा हुआ है. मैंने यह संग्रह पूरा नहीं पढ़ा था, क्योंकि मैं जब भी कोई पुस्तक पढ़ती हूँ, तो उसे जल्दबाज़ी में ख़त्म करने के बजाय धीरे-धीरे, जब समय मिले और मूड हो, तभी पढ़ पाती हूँ. इस संग्रह की हर कविता को पढ़ने के बाद यह अपने आप में एक अलग और अनूठी कृति लगी. कुछ गीत-से, कुछ ग़ज़ल-से और कुछ कविताएँ—हर रचना अपनी अलग पहचान बनाती है. डॉ. प...
लोक-परंपरा और माटी की खूशबू…

लोक-परंपरा और माटी की खूशबू…

पुस्तक-समीक्षा
सुनीता भट्ट पैन्यूली रंग हैं, मौसम हैं, तालाब हैं पोखर हैं, मछली है, खेत हैं, खलिहान हैं, पुआल है, मवेशी, कुत्ता, गिलहरी हैं, ढिबरी है, बखरी है, बरगद है, पीपल हैं, पहाड़ हैं, पगडंडियां हैं, because आकाश है, ललछौंहा सूरज है, धूप है, बादल हैं, बुजुर्ग मा-बाबूजी हैं, बच्चे हैं, बीमारी है, षोडशी है, मेहनतकश जुलाहे की दिनचर्या है, भूख है, चुल्हा है, राख है तवा है, गोल रोटी है, मजबूरी है, संताप है, भूख है, परंपरायें हैं, रस्म हैं रिवाज हैं, लोक-परंपराओं और माटी की खूशबू है. किताबी तिलिस्म ऐसा एक किताबी तिलिस्म soजिसमें सिमट आया है सबकुछ इंसानी जज़्बात, रिश्तों की जद्दोजहद, रोज़मर्रा की खींचतान जिंदगी से, साक्षात्कार दैनिक जीवन-मुल्यों का और विशेषकर आदमी की  दैनंदिन उपभोग की मूलभूत आवश्यकताओं का. उपरोक्त जो भी मैंने लिखा but है मित्रों परिचय करा रही हूं मैं आदरणीय श्लेष अलंकार द्वारा लिखी गय...