कहानी: शीशफूल
सुनीता भट्ट पैन्यूली
कहानियों का नदी की तरह कोई मुहाना नहीं होता ना ही सितारों की तरह उनका कोई आसमान.
एक सजग दृष्टि और कानों की एकाग्रता किसी भी विषयवस्तु को कहानियों का चोला पहना देती हैं.
पलायन, बाढ़ या भूकंप के कारण लोग अपना घर छोड़कर कुछ अरसे के लिए बाहर ज़रुर चले जाते हैं किंतु आफत कम होते ही वापस अपने घर-परिवेश में आ जाते हैं.
किंतु स्त्रियों के संदर्भ में ऐसा विरल ही होता है. वह पलायन नहीं करती हैं किसी भी हारी-बीमारी और विपदा में. उन्हें तो पेड़ की तरह फलने-फूलने के लिए उनकी जड़ों को एक जगह से खोदकर दूसरी जगह पर विस्थापित कर दिया जाता है . यद्यपि,अपनी मूल जगह से जहां कि उनकी जड़ों को मनमाफ़िक खाद-पानी मिल रहा था,मुश्क़िल होता है उनके लिए वह सब छोड़कर दूसरी ज़मीन पर जड़ें जमाकर पुनः हरा-भरा होना. किंतु फिर भी उन्हें जन्म से मिले संस्कार और सीख का परिणाम है कि अपने पैरों को नयी ...