“ऊम” महक गॉंव की
सुमन जोशी
उत्तराखंड में खेती व अनाज से जुड़े न जाने कितने ही त्यौहार, कितने की रीति—रिवाज़ और न जाने कितनी ही मान्यताएं हैं. पर हर एक मान्यता में यहां की संस्कृति व अपनेपन की झलक देखने को मिलती है. कृषि प्रधान प्रदेश होने के कारण यहाँ हर एक फसल के बोने से लेकर के काटने व रखने तक अलग-अलग अनुष्ठान किये जाते हैं. किसी नई फसल की पैदावार में उसे ईष्ट देव को नैनांग के रूप में चढ़ाया जाता है और फिर समस्त गाँववासियों द्वारा प्रयोग किया जाता है.
पहाड़ों में खेतों में कुछ खेत जहाँ पर बहुत छाया रहती है या फिर सिमार (पानी भरे हुए खेत) में फसल ठीक प्रकार से पक नहीं पाती यानी हरी ही रह जाती है, ऐसे खेतों के किनारों से ही ऊम के लिए गेहूं के मुठे बाँध लिए जाते और ईजा, काकी या ज्येठजा में से कोई भी मुठे बनाकर बच्चों को थमा देते व इन्हें जलाने अथवा सेकनें का काम उन्हें दे देते. निःसंदेह बच्चों में उत्सा...