समृतियों की मंजूषा से…
सुनीता भट्ट पैन्यूली
काले घनीभूत बादल उभर आये थे soआसमान में, सुकून भरी अपने हिस्से की बारिश में भीगने का स्वप्न संजोने लगीं थी कुछ बेदार आंखें…, इन्हीं स्वप्नों को हकीकत में बदलने का ख़्याल सबसे जुदा कुनबों से उन बेख़ौफ़ चुनिंदा दिलों में कुंडली मारकर बैठ गया…घने हो आये तिरते बादलों के रलने-मिलने में.
कुंडली
दबे-पांव, चुपके-चुपके butपहाडों में आन्दोलन उमगने लगा था. अपने अधिकार, अपने पुर, अपनी संस्कृति, अपनी वैखरी, अपना खान-पान एक ही रंग में पुते हुए सब के शरीर और आत्माओं का स्वप्न के ऊंचे-ऊंचे महलों से उतरकर जमीन पर खुरदुरी रूपरेखा तैयार करना गलत भी न था.
कुंडली
बारहवीं कक्षा में ही हल्के-फुलके कानों को सुकून देते शब्दों के बुलबुले अनायास ही रंगीन शरारे छोड़ने लगे थे आंखों में… आधुनिक होगा अपना उतराखंड नई ट्रेन, मोटर कार, मल्टीप्लेक्स बिल्डिंग, फ्लाईओवर, becauseमाल, आधुनिक तकनीकी स...