Tag: आदिकवि गुमानी पंत

हिसालू की जात बड़ी रिसालू, जाँ जाँ जाँछ उधेड़ि खाँछ

हिसालू की जात बड़ी रिसालू, जाँ जाँ जाँछ उधेड़ि खाँछ

उत्तराखंड हलचल
डॉ. मोहन चन्द तिवारी कुमाउंनी के आदिकवि गुमानी पंत की एक लोकप्रिय उक्ति है - "हिसालू की जात बड़ी रिसालू, जाँ जाँ जाँछ उधेड़ि खाँछ. यो बात को क्वे गटो नी माननो, दुद्याल की लात सौणी पड़ंछ." अर्थात् हिसालू की प्रजाति बड़ी गुसैल किस्म की होती है, जहां-जहां इसका पौधा जाता है, बुरी तरह उधेड़ देता है, तो भी कोई इस बात का बुरा नहीं मानता, क्योंकि दूध देने वाली गाय की लातें भी खानी ही पड़ती हैं. हिसालू होता ही इतना रसीला है कि उसके आगे सारे फल फीके ही लगते हैं. इसीलिए गुमानी ने हिसालू की तुलना अमृत फल से की है- "छनाई छन मेवा रत्न सगला पर्वतन में, हिसालू का तोपा छन बहुत तोफा जनन में, पहर चौथा ठंडा बखत जनरौ स्वाद लिंण में, अहो में समझछुं, अमृत लग वस्तु क्या हुनलो ?" अर्थात् पहाड़ों में तरह-तरह के अनेक रत्न हैं, हिसालू के फल भी ऐसे ही बहुमूल्य तोहफे हैं,चौथे पहर में ठंड के समय हिसालू खाएं त...