Tag: अनीता मैठाणी

अब कहां कौन किसी को पहचानता है!

अब कहां कौन किसी को पहचानता है!

संस्मरण
अनीता मैठाणी कुछ दिनों से बाहर एक्टिवा से आते-जाते हुए चीनी मिट्टी के चाय के कप के गुच्छों से लदी साइकिल दिख जाया कर रही थी। आज एटीएम के बाहर वैसी ही एक साइकिल खड़ी दिखी और उसके ठीक बगल में साइकिल वाला मुंह लटकाये बैठे दिख गया तो मैंने ब्रेक लगाकर एक्टिवा सड़क के दूसरी ओर रोक दी और उसके पास जाकर पूछा क्या हुआ तबियत तो ठीक है आपकी? वह एक फ़ीकी मुस्कान मुस्कुरा दिया बोला थोड़ा थक गया था और तबियत भी ठीक नहीं रहती इसलिए रूक-रूक कर चलता हूं। उम्र रही होगी यही कुछ 60-62। मैंने कहा- चाय-वाय पी लीजिए कुछ आराम मिलेगा। तो उन्होंने बड़ी आत्मीयता से कहा नहीं-नहीं उसकी जरूरत नहीं है। वो पिछले साल स्टेंट (हृदय की शिराओं में पड़ने वाला स्टंट) पड़ा था तब से थोड़ा थक जाता हूँ साइकिल चलाते हुए बस्स। अब मैंने पूछा आपका नाम क्या हुआ, वो बोले युनूस। मैंने कहा मैं आपको थोड़ा मदद करूं तो आप बुरा तो नहीं मानेंगे। वो बो...
प्राकृतिक रंग आधारित आजीविका के लिए वरदान है – आसाम नील पौधे की खेती

प्राकृतिक रंग आधारित आजीविका के लिए वरदान है – आसाम नील पौधे की खेती

खेती-बाड़ी
अनीता मैठाणी हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक रंग देने वाले कई पेड़ पौधे और झाड़ियाँ हैं. दूसरी तरफ पूरी दुनिया में नेचुरल कलर को लेकर - प्राकृतिक रंगों की बहुत मांग बढ़ गयी है. कुछ वर्षों तक हम उत्तरखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में - सेमल के फूल, सकीना (हिमालयन इंडिगो), रुइन के फल (सिन्दूर)  काफल की छल, किल्मोड की जड़ो, बुरांस के फूलों आदि को प्राकृतिक रंग के लिए उपयोग करते थे. लेकिन 5-6 वर्ष पूर्व - पहाड़ के हश्तशिल्प प्राकृतिक रंगों पर काम कर रही - सामाजिक संस्था अवनी को नार्थ ईस्ट के एक पौधे - आसाम नील के बारे में पता चला. अवनी संस्था की निदेशक श्रीमती रश्मि जी ने बताया कि, आसाम नील पौधे जिसको अंग्रेजी में - Strobilanthes Cusia कहते हैं, आसाम में सिर्फ नील कहते हैं , इस पौधे के प्राकृतिक रंग की पूरी दुनिया में बहुत मांग है, लेकिन ये पौधा अभी उत्तराखंड में सबसे पहले अवनी संस्था ही लाई - अवनी 7-8 स...