Tag: रामायण

पाकिस्तान में इन दिनों उत्तराखंड की चर्चा!

पाकिस्तान में इन दिनों उत्तराखंड की चर्चा!

उत्तराखंड हलचल
देहरादून : खबर से पहले कोई भी पाठक खबर की हेडिंग पढ़ता है और यह तय भी करता है कि उसे खबर पढ़नी है या नहीं। सोशल मीडिया के दौर में खबरें पढ़ाने के लिए सनसनीखेज हेडिंग लगाई जाती हैं। लेकिन, हमारी हेडिंग भी सही है और खबर पूरी तरह से सही है। पाकिस्तान में इन दिनों उत्तराखंड की खूब चर्चा है। चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने एक बयान दिया था कि राज्य के मदरसों में रामायण पढ़ाई जाएगी। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा था कि हमारा डीएनए भी इससे मेल खाता है। उनके इस बयान के बाद देशभर में खूब बवाल हो रहा है। यह बवाल अब पाकिस्तान तक पहुंच गया है। पाकिस्तान के मशहूर यूट्यूबर शोएब ने अपने चैनल रीयल इंटरटेनमेंट पर शो किया है। बकौल शोएब पाकिस्तान में उत्तराखंड के इस फैसले की खूब चर्चा हो रही है। मौलाना और मौलवी इससे गुस्से में हैं। केवल पाकिस्तान में ही नहीं, बल...
द्रोणगिरि में संजीवनी बूटी का सच क्या है?

द्रोणगिरि में संजीवनी बूटी का सच क्या है?

साहित्‍य-संस्कृति
डॉ. मोहन चंद तिवारी आज तक संजीवनी क्यों नहीं मिली क्योंकि संजीवनी बूटी का जो वास्तविक पर्वत द्वाराहाट स्थित दुनागिरि है, वहां इस दुर्लभ बूटी को खोजने का कभी प्रयास ही नहीं हुआ. दूसरी खास so बात यह है कि उत्तराखंड सरकार हो या पतंजलि योगपीठ इन्होंने कभी रामायण, महाभारत, पुराण आदि ग्रन्थों में संजीवनी बूटी के पौराणिक भूगोल और रामायण की घटनाओं का गम्भीरता से अध्ययन ही नहीं किया. इतिहास बताता है कि संजीवनी बूटी तो महाभारत काल में ही लुप्त हो चुकी थी. फिर भी संजीवनी बूटी की खोज में रुचि रखने वाले टीवी चैनलों और विद्वानों के लिए आज भी प्रासंगिक है मेरा चार वर्ष पहले लिखा गया यह लेख. नेता जी 29 सितंबर, 2008 को टीवी चैनल- आईबीएन-7 के माध्यम से जब योगगुरु बाबा रामदेव के हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ के स्वामी बालकृष्ण द्वारा गढ़वाल जिले के 'द्रोणागिरी' पर्वत पर जाकर रामायणकालीन संजीवनी बूटी के मि...
हिंदोस्ता की सामुद्रिक विरासत (मैसोपोटामिया टू मुजरिस ) 

हिंदोस्ता की सामुद्रिक विरासत (मैसोपोटामिया टू मुजरिस ) 

इतिहास, ट्रैवलॉग
मंजू दिल से… भाग-15 मंजू काला सदियों से समंद हिंदुस्तान की जन-आस्थाओं के साथ पूरे परिवेश के साथ जुड़े रहे हैं. समंदर का भारतीय सभ्यता, संस्कृति, धर्म और अर्थ के क्षेत्र में विशेष स्थान रहा है. because रत्नाकर के रूप में सागर भारत भूमि को अनादिकाल से धन-धान्य से समृद्ध करते रहे हैं. सभ्यता के प्रारम्भ से लेकर आज तक भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग अपने जीवन निर्वाह के लिये पूरी तरह से समुद्रों पर ही आश्रित रहा है. आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये हमने हर प्रकार से समुद्र का आशीर्वाद लिया है. मनुष्य मेरा मानना है कि समुद्र मंथन से प्राप्त रत्नों के कारण ही हमें विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता होने का गौरव प्राप्त हुआ. सदियों से हमारे पर्यावरण की रक्षा भी इन्हीं से होती रही है. because लेकिन, खेद के साथ लिखना चाहती हूँ कि हम सब समुद्र तट पर बैठ कर धरती की रेती को अपनी आभा से निहाल ...