Tag: माधो सिंह भंडारी

उत्तराखंड हिमालय की धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं का प्रतीक  है: छोटी दीवाली और इगास

उत्तराखंड हिमालय की धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं का प्रतीक है: छोटी दीवाली और इगास

लोक पर्व-त्योहार
जे पी मैठाणी  ऐ- ध्यान धोरया - यी राखुडी- कांणसी बग्वाल मतलब छ्वोटी दीवाली का दिन ख्वोली कणी ग्वोरू का पुछडा पर बाँधण च ( हे ध्यान रखना सब लोग - ये जो तुम्हारे हाथों पर राखियाँ बांधी जा रही है , ये छोटी दिवाली के दिन काटकर गाय के पूछ पर बाँध देनी हैं.  - ध्यान रखना- ये कोई और नहीं मेरी माँ ( श्रीमती विशेश्वरी देवी )  रक्षाबंधन के दिन हमको - बार बार बोल देती थी , और आज भी मैंने अपनी मां को फ़ोन करने की कोशिश की लेकिन अभी रात बेहद हो गयी तो बात नहीं हो पायी ! उस दौर में समस्या यह थी की उस जमाने में स्पंज से बनी राखियाँ जल्दी ही पानी सोखकर टूट जाती थी,  और सिर्फ सामान्य धागे वाली राखी पसनद नहीं आती थी ! आस पास के गांवों से जो पंडित जी भी आते थे उनकी हल्दी  और लाल पिठाईं में रंगी गयी राखियों से सारी हथेलियाँ रंग जाती थी और स्कूल में लिखते वक्त नोट बुक पर राखियों का वो कच्चा रंग लग जाता था ! घर...
इगास पर्व: भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व: भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

लोक पर्व-त्योहार
सुनीता भट्ट पैन्यूली इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और  पुरुष संभवतः अपने कठिन जीवन की पीड़ा सहकर भी इस प्रकार से आशान्वित हैं कि, अंधेरा वहीं काबिज़ रहेगा जहां उसे रहना है,ये प्रकाश ही है जिसे स्वयं अंधेरों के कोने-कोने तक पहुंचकर उसके काले रंध्रों में भी उजाला करना होगा अर्थात स्वयं को उर्ज्जवसित करने के लिये, स्वयं का अनथक प्रयास.. और यही जिंदगी जीने का मूलमंत्र भी तो है. यही जीवन का उदेश्य भी होना चाहिए कि चाहे बाहर जितना भी अंधेरा हो हमें मन के कोनों-कोनों को प्रकाशित करना है. संपूर्ण भारत में मनायी जाने वाली दीपावली के ग्यारहवें दिन बाद हरिबोधनी एकादशी अर्थात कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को उत्तराखंड में बग्वाल, इगास या बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है. उत्तराखंड में दीपावली को पारंपरिक रुप से बग्वाल और एकादशी को इगास कहा ज...