Tag: महाकाव्य

मालिनी का आंचल…

मालिनी का आंचल…

पुस्तक-समीक्षा
नीलम पांडेय ‘नील’ डा. डी. एन. भटकोटी जी के प्रबंध काव्य संग्रह मालिनी (भरत-भारत) पूर्व लिखित गघ एवं काव्य संग्रह से काफी भिन्न और नवीन है. पूर्व में लिखित अधिकतर काव्य संग्रह में जिस प्रकार दुष्यन्त केन्द्र बिन्दु थे, उसी प्रकार मालिनी (भरत-भारत) काव्य संग्रह में शकुन्तला प्रधान नायिका है. डा. भटकोटी जी ने शकुन्तला को प्रधानता देते हुऐ, because एक पहाड़ की स्त्री के रूप में उसकी मनःस्थिति का अवलोकन किया है. समस्त काव्यखंड की अन्र्तवस्तु, अभिव्यक्ति, शिल्प तथा भाव स्तर बेहद अलग है, या यूँ कहें कि यह अपनी परम्परागत शैली को बनाऐ रख कर की गयी नवीनतम विधा है. भटकोटी उक्त संग्रह में रचनाकार का लम्बा रचनात्मक संर्घष नजर आता है, यहां पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है कि आदरणीय डी. एन. भटकोटी जी लिखते हुऐ अपने मन की सतह पर उग आयी विचारों की तहों को खोलने के प्रयास में रहते हैं, जिनमें उनका खुद का ग...
न्यायदेवता ग्वेलज्यू के अष्ट-मांगलिक नारी सशक्तीकरण के सिद्धांत

न्यायदेवता ग्वेलज्यू के अष्ट-मांगलिक नारी सशक्तीकरण के सिद्धांत

साहित्‍य-संस्कृति
डॉ. मोहन चंद तिवारी "नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में. पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में..”                       –जयशंकर प्रसाद 8 मार्च का दिन समूचे विश्व में 'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' के रूप में मनाया जाता है. यह दिन महिलाओं को स्नेह, सम्मान और उनके सशक्तीकरण का भी दिन है. because हिंदी के जाने माने महाकवि जयशंकर प्रसाद जी की उपर्युक्त पंक्तियों से भला कौन अपरिचित है जिन्होंने श्रद्धा और विश्वास रूपिणी नारी को अमृतस्रोत के रूप में जीवन के धरातल में उतारा है. प्राचीन काल से ही हमारे समाज में नारी का विशेष आदर और सम्मान होता रहा है. हमारे पौराणिक ग्रंथों में नारी को पूज्यनीय एवं देवीतुल्य माना गया है. हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियां वहीं पर निवास करती हैं जहां पर समस्त so नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. कोई भी परिवार,...