कोरोना जनित संकट: मजदूरों को झेलनी पड़ी सबसे अधिक मुसीबत और बेरोजगारी
अनीता मैठाणी
सुख हो, दुख हो, आपद हो, विपद हो बच्चे जब तक माता-पिता के छत्र-छाया में होते हैं सब झेल जाते हैं. क्योंकि माता-पिता अपनी जान पर खेलकर भी अपने नन्हें-मुन्नों को आंच नहीं आने देते. यदि विचार करें तो जनता के लिए सरकारें भी माता-पिता की भूमिका में होते हैं यदि वे इसे स्वीकारें और दायित्व निभाएं तो. परंतु यहाँ होता कुछ और है चुनाव के वक्त सरकारें जनता को माई-बाप कहने को तैयार रहती हैं और चुनाव जीतते ही सारे वादों को भुलाकर अधिष्ठाता बन बैठती है.
देश में कोरोना की शुरुआत से पहले ही सरकार ये दावा कर चुकी थी कि हमारी तैयारी पर्याप्त है और यूं भी हमारे देशवासियों को घबराने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है. वैसे भी ये जो कोरोना वायरस है इससे लड़ने की क्षमता हममें अधिक है क्यूंकि हम जिन परिस्थितियों में रहते हैं उससे हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता इतनी मजबूत हो चुकी है कि हमें ऐसे छोटे-मोटे ...