भारत की कृषि कहावतें: कहे घाघ के सुन भडूरी!
मंजू दिल से… भाग-32
मंजू काला
कुछ पखवाड़े पहले की बात है, सुबह की चाय सुड़कते हुए एक समाचार ने मेरा ध्यान आकर्षित किया था कि कृषि विभाग किसानों को मौसम अनुमान करने के लिए कहावतें पढा रहा है, पढकर मुझ जैसी आधुनिका का आश्चर्य चकित होना लाजमी था, उत्सुकता वश मैंने पड़ताल की तो पाया कि सदियों पहले हमारे देश में कृषि के संबंध में कुछ मुहावरे कहे गये हैं! मैंने जब गहराई से इन कहावतों की बाबत जानकारी इकट्ठा की तो समझ गयी की ये मुहावरे, कहावतें, लोकोक्तियाँ हमारे देश की कृषक संस्कृति को बयां करती है, इनमें ज्ञान भरा होता है। वैसे अरबी भाषा में एक कहावत है-,
"अल-मिस्लफ़िल कलाम कल-मिल्ह फ़िततआम"
यानी बातों में-कहावतों या मुहावरों और उक्तियों की उतनी ही ज़रूरत है जितनी की खाने में नमक की।" ग्रामीण लोक अपनी बात में वजन पैदा करने के लिए अक्सर इन मुहावरों का इस्तेमाल करते है...