Tag: गिरीश्वर मिश्र

अस्तित्व की व्याप्ति का उत्सव है होली

अस्तित्व की व्याप्ति का उत्सव है होली

लोक पर्व-त्योहार
होली पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  प्रकृति के सौंदर्य और शक्ति के साथ अपने हृदय की अनुभूति को बाँटना बसंत ऋतु का तक़ाज़ा है. मनुष्य भी चूँकि उसी प्रकृति की एक विशिष्ट कृति है इस कारण वह इस उल्लास से अछूता नहीं रह पाता. माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत की आहट मिलती है. परम्परा में वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है इसलिए उसके जन्म के साथ इच्छाओं और कामनाओं का संसार खिल उठता है. फागुन और चैत्त के महीने मिल कर वसंत ऋतु बनाते हैं. वसंत का वैभव पीली सरसों, नीले तीसी के फूल, आम में मंजरी के साथ, कोयल की कूक प्रकृति सुंदर चित्र की तरह सज उठती है. फागुन की बयार के साथ मन मचलने लगता है और उसका उत्कर्ष होली के उत्सव में प्रतिफलित होता है. होली का पर्व वस्तुतः जल, वायु, और वनस्पति से सजी संवरी नैसर्गिक प्रकृति के स्वभाव में उल्लास का आयोजन है. रंग, गुलाल और अबीर से एक दूसरे को...
गणतंत्र का आह्वान सुनें!

गणतंत्र का आह्वान सुनें!

देश—विदेश
26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  चौहत्तर साल पहले आज ही के दिन भारत की संसद ने देश की शासन व्यवस्था चलाने के लिए एक संविधान स्वीकार किया था जिसने भारत सरकार अधिनियम-1935 की जगह ली. इस संविधान का आरम्भ उसकी उद्देशिका (प्रिएम्बल) के साथ होता है और उद्देशिका का आरम्भ संविधान को लेकर कुछ आधारभूत स्थापनाओं के लिए भारतीय समाज की प्रतिश्रुति के साथ होता है. ये प्रतिश्रुतियाँ संविधान का आधार बनती है और उसके प्रयोग की सम्भावनाओं और सीमाओं को भी रेखांकित करती हैं. न्याय , स्वतंत्रता , समता  और बंधुत्व के चार मानवीय और सभ्यतामूलक लक्ष्यों को समर्पित ये प्रतिश्रुतियाँ भारतीय समाज की उन भावनाओं के सार तत्व को प्रतिबिम्बित करती हैं जो एक आधुनिक राष्ट्र की परिकल्पना को मूर्त आकार देती हैं. एक तरह से पूरा संविधान ही इन्हीं प्रतिश्रुतियों को व्यवहार में लाने की व्यवस्था का विस्तार ...
भारतीय महिलाओं का  सामाजिक यथार्थ और चुनौतियाँ 

भारतीय महिलाओं का  सामाजिक यथार्थ और चुनौतियाँ 

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  इस तथ्य के बावजूद कि महिलाएं हमारे समाज का एक अभिन्न अंग हैं और कई महिलाएं घर और बाहर विविध जिम्मेदारियों को निभा रही हैं, उनकी स्थिति और अधिकारों को न तो ठीक से समझा जाता है और न ही उन पर ध्यान दिया जाता है. सतही तौर पर, महिलाओं के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है, और वादे अक्सर किए जाते हैं. वास्तव में महिलाओं का सम्मान एक पारंपरिक भारतीय आदर्श है और सैद्धांतिक रूप से इसे समाज में व्यापक स्वीकृति भी मिली है. उन्हें 'देवी' कहा जाता है. दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में इनकी पूजा की जाती है और इनकी स्तुति भी धूमधाम से की जाती है. किसी भी शुभ कार्य या अनुष्ठान की शुरुआत गौरी और गणेश की पूजा से होती है. यह सब समृद्धि बढ़ाने और अधिक शक्ति प्राप्त करने की इच्छा को पूरा करने और अधिकतम क्षमता का एहसास करने के लिए किया जाता है. लेकिन आज जिस तरह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा ब...
तनाव और अवसाद से ग्रस्त होना आज आम हो गया!

तनाव और अवसाद से ग्रस्त होना आज आम हो गया!

साहित्‍य-संस्कृति
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (1 0 अक्टूबर) पर विशेष   गिरीश्वर मिश्र ‘जीवेम शरद: शतम्’! भारत में स्वस्थ और सुखी सौ साल की जिंदगी की आकांक्षा के साथ सक्रिय जीवन का संकल्प लेने का विधान बड़ा पुराना  है. पूरी सृष्टि में मनुष्य अपनी कल्पना शक्ति और बुद्धि बल से सभी प्राणियों में उत्कृष्ट है. वह इस जीवन और जीवन के परिवेश को रचने की भी क्षमता रखता है. साहित्य, कला, स्थापत्य, और ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में उसकी विराट उपलब्धियों को देख कर कोई भी चकित हो जाता है. यह सब तभी सम्भव है जब जीवन हो और वह भी आरोग्यमय हो. परन्तु लोग स्वास्थ्य पर तब तक  ध्यान नहीं देते  जब तक कोई कठिनाई न आ जाय. दूसरों से तुलना करने और अपनी  बेलगाम होती जरूरतों और महत्वाकांक्षाओं के बदौलत तरह-तरह, चिंता कष्ट, तनाव और अवसाद से ग्रस्त होना आज आम बात हो गयी है. मुश्किलों के आगे घुटने टेक कई लोग तो जीवन से ही निराश हो बैठ...
स्वराज का बिम्ब और स्वदेशी का संकल्प

स्वराज का बिम्ब और स्वदेशी का संकल्प

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  सन 1909 में लंदन से दक्षिण अफ़्रीका को लौटते हुए गांधी जी ने तब तक के अपने सामाजिक-राजनैतिक विचारों को सार रूप में गुजराती में दर्ज किया जिसे ‘हिंद स्वराज’ शीर्षक से प्रकाशित किया जिसे बंबई की सरकार ने ज़ब्त कर लिया. फिर जब गांधी जी 1915 में दक्षिण अफ़्रीका का कार्य पूरा कर भारत लौटे तब इस पुस्तिका को अंग्रेज़ी में छपाया. इस बार सरकार ने विरोध नहीं किया और यह पढ़ने के लिए सब को उपलब्ध हो गयी. इसे लेकर देश-विदेश में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की आकोचनाएँ होती रहीं. खुद गांधी जी के शब्दों में ‘इसके विचार उनकी आत्मा में गढ़े-जड़े हुए’ से थे. सन 1938 में सेवाग्राम, वर्धा में आर्यन पथ नामक पत्रिका में अंग्रेज़ी में इसके प्रकाशन के अवसर पर उन्होंने कहा था कि ‘इसे लिखने के बाद तीस साल मैंने अनेक आँधियों में बिताए हैं, उनमें मुझे इस पुस्तक में फेर बदल करने का कुछ भी का...
नोएडा ट्विन टावर: हम कहाँ जा रहे हैं? 

नोएडा ट्विन टावर: हम कहाँ जा रहे हैं? 

देश—विदेश, समाज
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  टीवी पर नोएडा में सुपर टेक के बहुमंज़िले ट्विन टावरों के गिराने और उससे उड़ते धूल-धुआँ के भयावह दृश्य दिखाने के कुछ समय बाद उसके निर्माता का बयान आ रहा था कि उन्होंने सब कुछ बाक़ायदा यानी नियम क़ानून से किया था और हर कदम पर ज़रूरी अनुमति भी ली थी। शायद 800 करोड़ रूपयों की लागत की यह सम्पत्ति थी जिसे सिर्फ़ 10 सेकेंड में जमीदोज कर दिया गया। वहाँ आस-पास रहने वाले  राहत की साँस ले रहे हैं कि सालों से ठहरी धूप और हवा उन तक पहुँच सकेगी। निश्चय ही यह एक क़ाबिले गौर घटना है जो भ्रष्टाचार होने और उस पर लगाम लगाने इन दोनों ही पक्षों पर रोशनी डालती है। टीवी के ऐंकर ने यह भी बताया कि सालों से चलते इस पूरे मामले में काफ़ी बड़ी संख्या में अधिकारी संलिप्त रहे थे पर तीन के निलम्बन के सिवा शेष पर अभी तक कोई कारवाई नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश के मंत्री का बयान था कि जाँच के अनुसार उचि...
शिक्षक की गरिमा : पुनर्प्रतिष्ठा की अनिवार्यता

शिक्षक की गरिमा : पुनर्प्रतिष्ठा की अनिवार्यता

साहित्‍य-संस्कृति
शिक्षक दिवस पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  भारतीय संस्कृति में गुरु या शिक्षक को ऐसे प्रकाश के स्रोत के रूप में ग्रहण किया गया है जो ज्ञान की दीप्ति से अज्ञान के आवरण को दूर कर जीवन को सही मार्ग पर ले चलता है. इसीलिए उसका स्थान सर्वोपरि होता है. उसे ‘साक्षात परब्रह्म’ तक कहा गया है.  आज भी सामाजिक, आध्यात्मिक और निजी जीवन में बहुत सारे लोग किसी न किसी गुरु से जुड़े मिलते हैं. because गुरु से प्रेरणा पाने और उनके आशीर्वाद से मनोरथों की पूर्ति की कामना एक आम बात है यद्यपि गुरु की संस्था में इस तरह के विश्वास को कुछ छद्म  गुरु  नाजायज़ फ़ायदा भी उठाते हैं और गुरु-शिष्य के पावन सम्बन्ध को because लांछित करते हैं. शिक्षा के औपचारिक क्षेत्र में गुरु या शिक्षक एक अनिवार्य कड़ी है जिसके अभाव में ज्ञान का अर्जन, सृजन और विस्तार सम्भव नहीं है . भारत में शिक्षक दिवस डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स...
कर्मयोगी श्रीकृष्ण: जियो तो ऐसे जियो !

कर्मयोगी श्रीकृष्ण: जियो तो ऐसे जियो !

लोक पर्व-त्योहार
कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  सुख की चाह और दुःख से दूरी बनाए रखना जीवित प्राणी का सहज स्वाभाविक व्यवहार है और पशु मनुष्य सब में दिखाई पड़ता है. यह सूत्र जीवन के सम्भव होने की शर्त की तरह काम करता है. पर इसके आगे की कहानी हम सब खुद रचते हैं. आहार, निद्रा, भय और मैथुन के अलावे हम सब धन, दौलत, पद, प्रतिष्ठा, आदर, सम्मान, प्रेम, दया, दान आदि समाजजनित कामनाओं के इर्द-गिर्द निजी और सार्वजनिक जीवन ताना-बाना बुनते हैं. जिन्दगी खेने की सारी because कशमकश इन्हीं को लेकर चलती रहती है और आज की दुनिया में हर कोई कुंठा और तनाव से जूझता दिख रहा है और उससे निपटने के लिए मानसिक दबाव बढ़ता जा रहा है. थोड़ा निकट से देखें तो यही बात उभर कर सामने आती है कि किसी न किसी तरह सभी अपनी स्थिति से असंतुष्ट हैं. कुछ लोग जितना है उसमें इच्छा से कम होने को ले कर तो कुछ लोग जो उनके पास नहीं ह...
स्वतंत्र भारत में स्वराज की प्रतिष्ठा

स्वतंत्र भारत में स्वराज की प्रतिष्ठा

साहित्‍य-संस्कृति
स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त, 2022) पर विशेष  प्रो. गिरीश्वर मिश्र  आज़ादी मिलने के पचहत्तर साल बाद देश स्वतंत्रता का ‘अमृत महोत्सव’ मना रहा है तो यह विचार करने की इच्छा और स्वाभाविक उत्सुकता पैदा होती है कि स्वतंत्र भारत का जो स्वप्न देखा गया था वह किस रूप में यथार्थ के धरातल पर उतरा. स्वाधीनता संग्राम का प्रयोजन यह था कि भारत को न केवल उसका अपना खोया हुआ स्वरूप वापस मिले बल्कि वह विश्व में अपनी मानवीय because भूमिका को भी समुचित ढंग से निभा सके. देश या राष्ट्र का भौगोलिक अस्तित्व तो होता है पर वह निरा भौतिक पदार्थ नहीं होता जिसमें कोई परिवर्तन न होता हो. वह एक गत्यात्मक रचना है और उसी दृष्टि से विचार किया जाना उचित होगा. बंकिम बाबू ने भारत माता की वन्दना करते हुए उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में ‘सुजलां सुफलां मलयज शीतलां शस्य श्यामलां मातरं वन्दे मातरं‘ का अमर गान रचा था. ‘सुखदां वरदां म...
सामर्थ्य के विमर्श में मातृभाषा का स्थान 

सामर्थ्य के विमर्श में मातृभाषा का स्थान 

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  मनुष्य इस अर्थ में भाषाजीवी कहा जा सकता है कि उसका सारा जीवन व्यापार भाषा के माध्यम से ही होता है. उसका मानस भाषा में ही बसता है और उसी से रचा जाता है. because दुनिया के साथ हमारा रिश्ता भाषा की मध्यस्थता के बिना अकल्पनीय है. इसलिए भाषा सामाजिक सशक्तीकरण के विमर्श में प्रमुख किरदार है फिर भी अक्सर उसकी भूमिका की अनदेखी की जाती है. भारत के राजनैतिक-सामाजिक जीवन में ग़रीबों, किसानों, महिलाओं, जनजातियों यानि हाशिए के लोगों को सशक्त बनाने के उपाय को हर सरकार की विषय सूची में दुहराया जाता रहा है. पढ़ें- अंतर्मन की शांति है प्रसन्नता की कुंजी ज्योतिष वर्तमान सरकार पूरे देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृतसंकल्प है. आत्म-निर्भरता के लिए ज़रूरी है कि अपने स्रोतों और संसाधनों का उपयोग को पर्याप्त बनाया जाए ताकि कभी दूसरों का मुँह न जोहना पड़े. इस दृष्टि से ‘स्वदेशी’ का नारा ...