Tag: कुमाऊँ

जहां न्‍याय के लिए गुहार लगाने पहुंचते हैं लोग…

जहां न्‍याय के लिए गुहार लगाने पहुंचते हैं लोग…

साहित्‍य-संस्कृति
कुमाऊंनी से कुछ अलग है न्याय देवता गोरिल की गढ़वाली जागर कथा न्यायदेवता गोरिल पर एक शोधपूर्ण लेख डॉ. मोहन चंद तिवारी कुमाऊं और गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों में 'ग्वेल देवता', ‘गोलज्यू’ ,‘गोरिल' आदि विभिन्न नामों से आराध्य न्याय देवता की लोकगाथा के विविध संस्करण प्रचलित हैं और उनमें इतनी भिन्नता है कि कभी कभी उनमें परस्पर तारतम्य बिठाना भी बहुत कठिन कार्य हो जाता है. because लोकगाथाओं की सामान्य प्रवृत्ति रही है कि विभिन्न क्षेत्रीय मान्यताओं और जनश्रुतियों के आधार पर इनका निरंतर कथाविकास होता रहता है. जागर लगाने वाले क्षेत्रीय जगरियों के द्वारा भी कथा में अपनी तरफ से कुछ नया जोड़ देने के कारण न्याय देवता ग्वेल की कथा के साथ समय समय पर कई अवांतर कथाएं भी जुड़ती गई हैं. मूल कथा को क्षेत्रीय भेद और स्थानीय मान्यताओं के कारण भी कई तरह के मोड़ दे दिए गए हैं. इसलिए यह पता लगाना कठिन है कि न्य...
अमावस्या की रात गध्यर में ‘छाव’, मसाण

अमावस्या की रात गध्यर में ‘छाव’, मसाण

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—61 प्रकाश उप्रेती गाँव में किसी को कानों-कान खबर नहीं थी. शाम को नोह पानी लेने के लिए जमा हुए बच्चों के बीच में जरूर गहमागहमी थी- 'हरि कुक भो टेलीविजन आमो बल' because (हरीश लोगों के घर में कल टेलीविजन आ रहा है). भुवन 'का' (चाचा) की इस जानकारी को पुष्ट करते हुए चंदन ने कहा- 'हम ले यसे सुणेमुं' (हम भी ऐसा ही सुन रहे हैं). इसके बाद तो नोह के चारों ओर बैठे लोगों के बीच से टेलीविजन पर दुनिया भर का ज्ञान उमड़ आया.  so जिसने भी पहले टीवी देखा हुआ था वह अपनी तई भरपूर ज्ञान दे रहा था. उसमें हम जैसे लोग भी थे जिन्होंने टीवी सुना भर ही था लेकिन मुफ्त के ज्ञान देने में हम भी पीछे नहीं थे. टीवी में फ़िल्म आती है . यह ज्ञान सबके पास था. इसके आगे का ज्ञान किसी को नहीं था. इसके आगे तो एंटीना, से लेकर उसके आकार-प्रकार पर बात चल रही थी. टेलीविजन इस ज्ञान के चक्कर...
निर्णय

निर्णय

किस्से-कहानियां
लधु कथा डॉ. कुसुम जोशी रात को खाना खात हुऐ जब बेटी because अपरा के लिये आये रिश्ते का जिक्र भास्कर ने किया तो... अपरा बिफर उठी, तल्ख लहजे में बोली “आप को मेरी शादी के लिये लड़का ढूढ़ने की जरुरत नही.” फोन क्यों...? मम्मी पापा so दोनों साथ ही बोल पड़े... “मैंने अपने लिये लड़का पसंद कर लिया है, because आप लोग भी 'सोहम' को शायद अच्छी तरह से जानते है”. फोन बेटी के प्रेम विवाह के फैसले से because भास्कर बेहद चिन्तित हो उठे, कुमाऊंनी उच्चकुलीन ब्राह्मण परिवार के संस्कार, बाहर के समाजों में दहेज, दिखावे से भास्कर बहुत डरते हैं, उनके समाज में आज भी दान दहेज ज्यादा प्रचलित नही. फोन पति पत्नी हैरान, “इतना बड़ा निर्णय” becauseहम बेखबर हैं! बम ही फट पड़ा हो जैसे, पर बेटा मन्द- मन्द मुस्कुरा रहा था, शायद वो बहन का राजदार हो. फोन बेटी के प्रेम विवाह के फैसले से भास्कर बेहद because चिन्तित...
जब एक रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए धर लिया था शिला रूप!

जब एक रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए धर लिया था शिला रूप!

साहित्‍य-संस्कृति
देश ही नहीं विदेशों में भी धमाल मचा रही है रंगीली पिछौड़ी... आशिता डोभाल उत्तराखंड में दोनों मंडल गढ़वाल so और कुमाऊं अपनी—अपनी संस्कृति के लिए जाने जाते हैं. हम जब बात करते हैं अपने पारंपरिक परिधानों की तो हर जिले और हर विकासखंड का या यूं कहें कि हर एक क्षेत्र में थोड़ा भिन्नता मिलेगी पर कहीं न कहीं कुछ चीजें ऐसी भी हैं, जो एक समान होती हैं. जैसे— कुमाऊं की 'रंगीली पिछौड़ी' है, जो पूरे कुमाऊं मंडल का एक विशेष तरह का परिधान है, अंगवस्त्र है, इज्जत है और इसे पवित्र परिधान की संज्ञा Because भी दी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. इस परिधान का इतिहास बेहद रूचिपूर्ण है. राजे—रजवाड़े और सम्पन्न घरानों से पैदा हुआ ये परिधान स्वयं घरों में तैयार किया जाता था, बल्कि मंजू जी से प्राप्त जानकारी के अनुसार कुमाऊं की रानी 'जियारानी' से इसका इतिहास जुड़ा हुआ बताती हैं. परिधान एक दिन जैसे...
जोयूं उत्तराखंड में मातृपूजा की वैदिक परम्परा

जोयूं उत्तराखंड में मातृपूजा की वैदिक परम्परा

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी समूचे देश में शारदीय नवरात्र का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. दुर्गा सप्तशती में इसे वार्षिक देवी पूजा की संज्ञा दी गई है.उत्तराखंड के द्वाराहाट क्षेत्र में जालली के निकट स्थित so जोयूं ग्राम आदिकालीन मातृ उपासकों का एक ऐसा ग्राम है,जहां आज भी शारदीय नवरात्र में प्रतिवर्ष मां जगदम्बा की सामूहिक रूप से अखंड जोत जलती है और अष्टमी एवं दशमी की वार्षिक पूजा का पर्व विशेष रूप से मनाने की परंपरा भी रही है. पलायन हालांकि यह ग्राम भी पलायन के अभिशाप के कारण उत्तराखंड के अन्य ग्रामों की भांति बदहाली के दौर से गुजर रहा है.  पिछले तीन चार सालों में सड़क चौड़ीकरण के दौरान पीडब्‍ल्‍यूडी so विभाग ने जोयूं मार्ग में पड़ने वाले वन वृक्षों को नष्ट कर दिया है और गांव में जाने के लिए पुश्तैनी मार्ग भी बेरहमी से तोड़ दिए हैं. ग्रामसभा की उपेक्षा के कारण नागरिक सुविधाओं का यहां सर्वथा...
पारले-जी ने की ‘विज्ञापन स्ट्राइक’ (‘तुम’- ‘हम’)

पारले-जी ने की ‘विज्ञापन स्ट्राइक’ (‘तुम’- ‘हम’)

संस्मरण
प्रकाश उप्रेती मूलत: उत्तराखंड के कुमाऊँ से हैं. पहाड़ों में इनका बचपन गुजरा है, उसके बाद पढ़ाई पूरी करने व करियर बनाने की दौड़ में शामिल होने दिल्ली जैसे महानगर की ओर रुख़ करते हैं. पहाड़ से निकलते जरूर हैं लेकिन पहाड़ इनमें हमेशा बसा रहता है. शहरों की भाग-दौड़ और कोलाहल के बीच इनमें ठेठ पहाड़ी पन व मन बरकरार है. यायावर प्रवृति के प्रकाश उप्रेती वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं. कोरोना महामारी के कारण हुए 'लॉक डाउन' ने सभी को 'वर्क फ्राम होम' के लिए विवश किया. इस दौरान कई पाँव अपने गांवों की तरफ चल दिए तो कुछ काम की वजह से महानगरों में ही रह गए. ऐसे ही प्रकाश उप्रेती जब गांव नहीं जा पाए तो स्मृतियों के सहारे पहाड़ के तजुर्बों को शब्द चित्र का रूप दे रहे हैं. इनकी स्मृतियों का पहाड़ #मेरे #हिस्से #और #किस्से #का #पहाड़ नाम से पूरी एक सीरीज में दर्ज़ है. श्रृंखला, पहाड़ और because वहाँ ...
बिना पड़ाव (बिसोंण) के नहीं चढ़ा जाए पहाड़

बिना पड़ाव (बिसोंण) के नहीं चढ़ा जाए पहाड़

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—55 प्रकाश उप्रेती पहाड़ में पड़ाव का बड़ा महत्व है. इस बात को हमसे ज्यादा वो समझते थे जिनकी समझ को हम नासमझ मानते हैं. हर रास्ते पर बैठने के लिए कुछ पड़ाव होते थे ताकि पथिक वहाँ  बैठकर सुस्ता सके. दुकान से आने वाले रास्ते से लेकर पानी, घास लाने वाले सभी रास्तों में कुछ जगहें ऐसी बना दी जाती थीं जहां पर थका हुआ इंसान because थोड़ा आराम कर सके. बुबू बताते थे कि जब वो रामनगर से पैदल सामान लेकर आते थे तो 5 दिन लगते और बीच में 12 पड़ाव पड़ते थे. वो इन पड़ावों के अलावा कहीं और नहीं बैठते थे. पत्थर अब हमारा बाजार केदार हो गया है. यह गाँव से चार एक किलोमीटर तो होगा ही. पहले इस बाजार में बड़ी रौनक रहती थी. मिठाई से लेकर किताब, कंचे, राशन, चक्की सभी की दुकानें थीं. सबसे ज्यादा तो चाय और सब्जी की दुकानें होती थीं. शाम के समय तो आस-पास के गांव वालों से पूरा बाजार पट...
सॉल’ या ‘साही’ (Porcupine) की आवाज के दिन

सॉल’ या ‘साही’ (Porcupine) की आवाज के दिन

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—54 प्रकाश उप्रेती सर्दियों के दिन थे.because हम सभी गोठ में चूल्हे के पास बैठे हुए थे. ईजा रोटी बना रही थीं. हम आग 'ताप' रहे थे. हाथ से ज्यादा ठंड मुझे पाँव में लगती थी. मैं थोड़ी-थोड़ी देर में चूल्हे में जल रही आग की तरफ दोनों पैरों के तलुवे खड़े कर देता था. जैसे ही मैं ऐसा करता तो ईजा चट से "फूँकणी' (आग फूंकने वाला) उठाती और एक 'कटाक' लगा देती थीं. साथ में कहतीं- "चूल हन खुट लगानि रे, पैतो तते बे ररणी है जानि" (गुस्से में, चूल्हे में पाँव लगाता है, तलुवों को गर्म करने से पैर फिसलने वाले हो जाते हैं). 'फूँकणी' की कटाक के साथ ही झट से मैं पांव नीचे कर लेता था. कभी लग जाती और कभी बच जाता था. गोठ गोठ में रोटी बनाते हुए भी ईजा के कान बाहर को ही लगे रहते थे. बाहर से आने वाली आवाज के साथ ईजा but चौकनी हो जाती थीं. कभी बाघ के "गुरजने" (गर्जन), कभी किसी क...
गाँव का इकलौता ‘नौह’ वो भी सूख गया

गाँव का इकलौता ‘नौह’ वो भी सूख गया

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—53 प्रकाश उप्रेती पहाड़ में पानी और 'नौह' की because बात मैंने पहले भी की है लेकिन आज उस नोह की बात जिसे मैंने डब-ड़बा कर छलकते हुए  देखा है. उसके बाद गिलास से पानी भरते हुए और कई सालों से बूँद-बूँद के लिए तरसते हुए भी देखा है. पहाड़ ये हमारे छोटे से गाँव का इकलौता नौह था.but इसके बारे में तब कहा जाता था कि "सब जग पाणी बिसिक ले जालो, खोपड़ी नौह हन तो मिलोले" (अगर सब जगह पानी सूख भी जाएगा तो खोपड़ा वालों के नौह में तो मिलेगा ही). अब इसे दुर्भाग्य कहिए या सौभाग्य कि उस इलाके में सबसे पहले इसी नौह का पानी सूखा. एक बार सूखा तो फिर कभी लौटा भी नहीं. पानी तब पानी लाने के लिए शाम में ही जाना होता था.so ईजा घास लेने जाते हुए कहा करती थीं- "आज दी गगर भरि दिये हां पाणिल" (आज पानी से दो गगरी भर देना). हम तुरंत हाँ..हाँ..कह देते थे. शाम को एक "हलाम" (कु...
न्याय प्रियता ने राजा गोरिया को भगवान बना दिया   

न्याय प्रियता ने राजा गोरिया को भगवान बना दिया   

धर्मस्थल
डॉ. गिरिजा किशोर पाठक   18वीं सदी के जनेवा के महान becauseराजनीतिक दार्शनिक जॉन जैकब रूसो ने मनुष्य के बारे में कहा था कि ‘मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है किन्तु हर तरफ वह जंजीरों में जकड़ा राहत है.' मनुष्य स्वयं को जंजीरों में जकड़ा जाना इसलिए स्वीकार करता है और अपनी स्वतंत्रता को राज्य जैसी संस्था को इसलिए समर्पित कर देता है की राज्य उसके जीवन, संपत्ति, इज्जत, आबरू और सम्मान की रक्षा करे. कुमायूँ में राजतन्त्र के रूप में so कत्तूरी और चंद राजाओं ने राज किया. लगभग 24 (1790-1815 ) साल गोरखे राज किए. 1815 से 1947 तक अंग्रेजों के कमिश्नर राज किए. इस सम्पूर्ण काल में गोल्ज्यू के सिवा किसी राजा या शासक की जनसुनवाई और न्यायप्रियता का डंका कुमाऊ में नहीं बजा. ऐसा लगता है वह काल रामराज्य का स्वर्णिम युग रहा होगा. गोल्ज्यू गोल्ज्यू जहाँ से शिकायत becauseआती पगड़ी बांध अपने घोड़े पर सवार होकर चल ...