Tag: कण्वाश्रम

कण्वाश्रम : हमारी वैदिक परंपराओं और संस्कृतियों की जन्म-स्थली!

कण्वाश्रम : हमारी वैदिक परंपराओं और संस्कृतियों की जन्म-स्थली!

साहित्‍य-संस्कृति
सुनीता भट्ट पैन्यूली "हिमालय के दक्षिण में, समुद्र के उत्तर में, भारत वर्ष है जहां भारत के वंशज रहते हैं" संभवतः मैं उसी जगह पर खड़ी हूं जहां हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत तथा शकुंतला के गंधर्व विवाह के पश्चात भरत का जन्म हुआ. कालांतर में शकुंतला के इसी पुत्र भरत अर्थात चक्रवर्ती राजा भरत के नाम पर  हमारे देश का नाम भारत पड़ा. मैं कण्वाश्रम में विचरते हुए सुखद कल्पना कर रही हूं कि कितना रमणीय व मंत्रमुग्धकारी होता होगा वह पुरातन समय? है ना? जहां वेद ऋचाओं की स्वर लहरियों से गुंजायमान विशुद्ध वातावरण,पवित्र होम की धूम का सघन वन में विचरण एवं विद्यार्थियों द्वारा अनेक क्रियाकलापों से गुम्फित गुरूकुल जहां भविष्य के लिए संस्कृतियों एवं सभ्यताओं के उपार्जन हेतु ज्ञान-विज्ञान, खोज, अविष्कार, उपचार, सिद्धांतों की बुनियाद खोदी जाती रही होगी. मेरे मन की ज़मीन पर वह परिदृश्य भी उछाल मार रहा है कि प्...
पंडित नेहरू में क्यों जागी थी ‘कण्वाश्रम’ को जानने की रुचि

पंडित नेहरू में क्यों जागी थी ‘कण्वाश्रम’ को जानने की रुचि

पर्यटन
कण्वाश्रम एक ऐतिहासिक स्थल है, जिसका प्राचीन और समृद्ध इतिहास रहा है. महर्षि कण्व के काल में कण्वाश्रम शिक्षा का प्रमुख केंद्र हुआ करता था. because उस समय वहां दस हजार छात्र शिक्षा लेते थे. वैदिक काल में कण्वाश्रम शिक्षा और संस्कृति कर बड़ा गढ़ था. स्वरोजगार विजय भट्ट भारत की आजादी के बाद वर्ष 1955 में रूस दौरे पर गए भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जब रूस में महर्षि कण्व ऋषि की तपस्थली because और चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली कण्वाश्रम के बारे में सुना तो उनको इस ऐतिहासिक स्थल को जानने की जिज्ञासा हुई. स्वरोजगार हुआ यूं कि प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू1955 में रूस यात्रा पर गए थे. उस दौरान उनके स्वागत में रूसी कलाकारों ने महाकवि कालिदास रचित 'अभिज्ञान शाकुंतलम' की नृत्य नाटिका प्रस्तुत की. जिससे उन्हें भी इस ऐतिहासिक स्थल के जानने की जिज्ञासा हुई. वापस भ...