Tag: उत्तरकाशी

पिठाड़ी—पिदें की बाकर्या अर बाकर्यों कु त्यार

पिठाड़ी—पिदें की बाकर्या अर बाकर्यों कु त्यार

साहित्‍य-संस्कृति
लोक पर्व दिनेश रावत वर्ष का एक दिन! जब लोक आटे की बकरियाँ बनाते हैं. उन्हें चारा—पत्ती चुंगाते हैं. पूजा करते हैं. धूप—दीप दिखाते हैं. गंध—अक्षत, पत्र—पुष्ठ चढ़ाते हैं. रोली बाँधते हैं. टीका लगाते हैं. अंत में इनकी पूजा—बलि देकर आराध्य देवी—देवताओं को प्रसन्न करते हैं. त्यौहार मनाते हैं, जिसे 'बाकर्या त्यार' तथा संक्रांति जिस दिन त्यौहार मनाया जाता है 'बाकर्या संक्रांत' के रूप में लोक प्रसिद्ध है. बाकर्या त्यार की यह परम्परा उत्तराखण्ड के सीमान्त उत्तरकाशी के पश्चितोत्तर रवाँई में वर्षों से प्रचलित है. जिसके लिए लोग चावल का आटा यानी 'पिठाड़ी' और उसकी अनुपलब्धता पर 'पिदें' यानी गेहूँ के आटे को गूंथ कर उससे घरों में एक—दो नहीं बल्कि कई—कई बकरियाँ बनाते हैं, जिनमें 'बाकरी', 'बाकरू' अर्थात नर, मादा बकरियों के अतिरिक्त 'चेल्क्यिा' यानी ' मेमने' भी बनाए जाते हैं. बाकर्या त्यार की...
यमुना घाटी: जल संस्कृति की अनूठी परम्परा

यमुना घाटी: जल संस्कृति की अनूठी परम्परा

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
यमुना—टौंस घाटी की अपनी एक जल संस्कृति है. यहां लोग स्रोतों से निकलने वाले पानी को देवताओं की देन मानते है. इन नदी—घाटियों में जल स्रोतों के कई कुंड स्थापित हैं.​ विभिन्न गांवों में उपस्थित इन पानी के कुंडों की अपनी—अपनी कहानी है. इस घाटी के लोग इन कुंडों से निकलने वाले जल को बहुत ही पवित्रत मानते हैं और उनकी बखूबी देखरेख करते हैं. जल संस्कृति में आज हम ऐसे ही कुंडों से आपको रू—ब—रू करवा रहे हैं. यमुना घाटी के ऐसे ही कुछ जल कुंडों बारे में बता रहे हैं वरिष्ठ प​त्रकार प्रेम पंचोली— जल संस्कृति भाग—2 कमलेश्वर महादेव कमलेश्वर नामक स्थान का इस क्षेत्र में बड़ा महत्व है लोग शिवरात्री के दिन उक्त स्थान पर व्रत पूजने पंहुचते है श्रद्धालुओं का इतना अटूट विश्वास होता है कि यहां नंगे पांव पंहुचते है जबकि इस स्थान पर जाने के लिए तीन किमी पैदल मार्ग है. यहां पानी के दो धारे है तथा एक कुण्ड भी है...