Tag: अजमेर

चोखी ढाणी : राजस्थान की समृद्ध विरासत और रंगीली संस्कृति की झलक

चोखी ढाणी : राजस्थान की समृद्ध विरासत और रंगीली संस्कृति की झलक

ट्रैवलॉग
सुनीता भट्ट पैन्यूली कुछ यात्रायें किसी मनोरंजन व मन के परिवर्तन के लिए नहीं वरन अपनी  संतति के प्रति ज़िम्मेदारियों के वहन हेतु भी होती हैं.इस प्रकार की परिसीमित, निर्धारित व व्यवस्थित  यात्राओं में घुमक्कड़ी की कोई रूपरेखा या because बुनावट नहीं होती है किंतु फिर भी आनन-फानन में समय की तंगी और बोझिलता के बीच भी यदि समय हम पर कृपालु होकर स्वयं हमें सुखद क्षण दे देता है कुछ मनोरंजन के लिए तो और भी सोने पर सुहागा. ज्योतिष यदि समय का अभाव है और किसी एक राज्य से because दूसरे राज्य में विशेष काम से गये हैं तिस पर  वहां की संस्कृति को एक ही दिन में जानने की जिज्ञासा हो तो कतई संभव नहीं है उसका पूर्ण होना. ज्योतिष ख़ैर हमने ऐसी कोई परिकल्पना भी नहीं की थी because क्योंकि हमारी यात्रा औचक थी.क्या किया जाये?अनायास ही उठे हुए कदमों को जाना तो होता है मंज़िल की ओर किंतु कभी-कभी वे ठिठक भी जाते...
सराद बाबू का…

सराद बाबू का…

किस्से-कहानियां
नीमा पाठक इस साल बचुली बूबू दो तीन महीनों के लिए अपने मैत आई थी. कितना कुछ बदल गया था पहाड़ में अब हरे भरे ऊँचे पहाड़ भी जगह  जगह उधरे पड़े थे. पहाड़ों के बीच में because गगन चुम्बी बिजली या मोबाईल के टावर खड़े थे. जंगल में चरती गाएँ भी अब कहीं नजर नहीं आ रही थीं. खेत भी या तो बंजर थे जिनमें जंगली घास उग आई थी या फिर ‘बरसीम घास’ चारे के लिए बो दी गई थी. बचुली बूबू को याद आने लगे अपने पुराने दिन जब बाबू बड़बाज्यू का श्राद्ध करते थे कितनी because तैयारी होती थी, पहले दिन से ही पंडित जी को याद दिला दी जाती थी, आस पास की बहन बेटियों को निमंत्रण दिया जाता था, बिरादरी के लोग तो आते ही थे. ज्योतिष अनाज बोना तो छोड़ ही दिया था लोगों ने क्योंकि सरकार की तरफ से किसी वर्ग को मुफ्त में और किसी को नाममात्र की कीमत पर अनाज बंट रहा था. कौन मूर्ख होगा जो खेतों में because काम करेगा, उसके लिए बैल पालेग...
होरी खेरे तो अइयो मेरे गांव!

होरी खेरे तो अइयो मेरे गांव!

लोक पर्व-त्योहार
फाल्गुनी में धमार का सौरव मंजू दिल से… भाग-12 मंजू काला होली पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है! राग, अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगी छटा के साथ अपनी पूर्णता को प्राप्त हो जाती है! फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं. होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है. उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है. इस दिन से फाग और धमार का गायन प्रारंभ हो जाता है. खेतों में सरसों खिल उठती है. बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है. पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं. खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं. देश के बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं! चारों तरफ़ रंगों की ...