चूहों पर अंतरराष्ट्रीय मनकों के आधार पर चौदह रोग प्रतिरोधको को चिन्हित कर वाज्ञानिकों द्वारा मैसूर में किया गया अध्ययन.
आयुर्वेद द्वारा रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के दावे गाहे बेगाहे किए जाते रहे है लेकिन उक्त तथ्य को सिद्ध कर दिखाया है मैसूर में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित चिकित्सकीय अनुसंधान केंद्र में कार्यरत वैज्ञानिकों के एक समूह ने जिन्होंने चौदह रोग प्रतिरोधक के स्थापित मानको पर एक आयुर्वेदिक औषधि के प्रभाव का अध्ययन किया. अट्ठाईस दिनों तक चलने वाले इस परियोजना में पाया गया कि आयुर्वेदिक औषधि के सेवन के उपरांत चूहों में इम्यूनोग्लोब्लिन ए, एम और जी की मात्रा बढ़ जाती है तथा साथ ही न्यूट्रोफ़िल नामक रक्त के सफ़ेद कणो में रोगों से लड़ने हेतु चेन बनाने के गुण विकसित हो रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास होता है. इसी प्रकार इस अध्ययन में आयुर्वेदिक औषधि का उल्लेखनीय असर नेचुरल किलर सेल, एंटी हिस्टनिमिब, सेल रेगुलेशन, साइटोकाइन्स और एलर्जी नियामक मानको पर भी पाया गया है. आयुर्वेदिक औषधि में किसी प्रकार के स्टेरॉयड और रासायनिक पदार्थ ना होने की भी पुष्टि हुई है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब ख़ान पान, रहन सहन के बदलाव तथा बढ़ते प्रदूषण से रोग प्रतिरोधक क्षमता में दिनों दिन कमी आ रही है वहाँ एक सुरक्षित और प्रामाणिक रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाले उपयो की नितांत आवश्यकता है.
अंतराष्ट्रीय चिकित्सा शोध पत्रिका क्यूरियस के नूतन अंक में प्रकाशित हुआ है इस आशय का शोध पत्र. खनिज और जड़ी बूटी के संयोग से बनी किसी आयुर्वेदिक औषधि का रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाला प्रथम प्रामाणिक और विश्वसनीय प्रयास
पूर्व में यह औषधि मनुष्यों में हुए अनुसंधान में बार बार होने वाली सर्दी में आधुनिक चिकित्सा की औषधि के सापेक्ष बेहतर और सुरक्षित परिणाम दिखा चुकी है.
वैद्य बालेन्दु प्रकाश ने बताया कि आयुर्वेद की दवाईया कई जीर्ण और जटिल रोगों की सफल चिकित्सा में कारगर है लेकिन वैज्ञानिक प्रमाणों के अभाव में इनका व्यापक प्रसार और लाभ आम जन तक नहीं पहुँच पा रहा है. इसलिए उन्होंने अपने संसाधनों से ही इस परियोजना को अपने वैज्ञानिक मित्रों की सहायता से करने का बीड़ा उठाया. उन्होंने कहा कि इस अध्ययन के परिणामों से वो बहुत उत्साहित और प्रसन्न है क्योंकि इन परिणामों से आयुर्वेद जगत में अनुसंधान परक सोच के विकास के साथ आयुर्वेदिक औषधीय के असर के पीछे छिपे विज्ञान को जानने की उत्कंठा आयुर्वेद उद्योग, आयुष मंत्रालय, और अनुसंधान कर्ताओं में होगी और आयुर्वेद के वैज्ञानिक विकास से चिकित्सा के छेत्र में भारत की विश्व गुरु बनने की अवधारणा का विकास होगा.
प्रख्यात रसाचार्य, प्रोफेसर ऑफ़ प्रैक्टिस, पद्मश्री सम्मानित और भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ कि आर नारायणन के मानद चिकित्सक रहे वैद्य बालेन्दु प्रकाश ने किया है इस औषधि का विकास.
मेरठ में वैद्य परिवार में जन्मे और पले बढ़े वैद्य बालेन्दु वर्तमान में उत्तराखण्ड के उद्मसिंह नगर के देहात इलाक़े में जटिल रोग क्रॉनिक पैंक्रियटाइटिस के आयुर्वेदिक इलाज के लिए एक विशिष्ट आयुर्वेदिक केंद्र की स्थापना कर चुके है. एक प्रकार के रक्त कैंसर की सफल चिकित्सा करने के लिए उन्हें वर्ष 1999 में पद्मश्री से नवाज़ा जा चुका है. हाल ही में उनके विशद अनुभव और वैज्ञानिक सोच के मौलिक कार्य के मद्देनज़र नई शिखा नीति के अंतर्गत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देशों के अनुसार उड़ीसा स्तिथ आयुर्वेद महाविद्यालय में प्रोफेसर ऑफ़ प्रैक्टिस नियुक्त किया गया है. वैद्य बालेन्दु अभी तक बयालीस शोध पत्र प्रकाशित कर चुके है.