मंजू काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से ताल्लुक रखती हैं. इनका बचपन प्रकृति के आंगन में गुजरा. पिता और पति दोनों महकमा-ए-जंगलात से जुड़े होने के कारण, पेड़—पौधों, पशु—पक्षियों में आपकी गहन रूची है. आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं. आप ओडिसी की नृतयांगना होने के साथ रेडियो-टेलीविजन की वार्ताकार भी हैं. लोकगंगा पत्रिका की संयुक्त संपादक होने के साथ—साथ आप फूड ब्लागर, बर्ड लोरर, टी-टेलर, बच्चों की स्टोरी टेलर, ट्रेकर भी हैं. नेचर फोटोग्राफी में आपकी खासी दिलचस्पी और उस दायित्व को बखूबी निभा रही हैं. आपका लेखन मुख्यत: भारत की संस्कृति, कला, खान-पान, लोकगाथाओं, रिति-रिवाजों पर केंद्रित है. इनकी लेखक की विभिन्न विधाओं को हम हिमांतर के माध्यम से ‘मंजू दिल से…’ नामक एक पूरी सीरिज अपने पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. पेश है मंजू दिल से… की 9वीं किस्त…
मंजू दिल से… भाग-9
- मंजू काला
शिलप्पादिकारम… (“पायलों की कथा”.) काव्य में वर्णित है. ये काव्य संगम काल में, लगभग 2000 वर्ष पहले, पहली सदी में एक जैन राजकुमार
“इलांगो अडिगल” के द्वारा लिखा गया था. इस काव्य की गणना तमिल साहित्य के 5 सबसे बड़े महाकाव्यों में की जाती है. अन्य 4 काव्य हैं मणिमेकलाई (5वीं सदी), कुण्डलकेचि (5वीं सदी), वलयापति (9वीं सदी) तथा शिवका चिंतामणि (10वीं सदी).)चिंतामणि
प्राचीन काल में चोला राज्य के बंदरगाह पुहार में एक धनी व्यापारी रहता था जिसका नाम था माकटुवन. उसका एक पुत्र था कोवलन जिसका
विवाह पुहार के ही निवासी एक अन्य धनी व्यापारी मनायिकन की पुत्री कण्णगी से हुआ. प्रारंभ के कुछ वर्ष उन्होंने बड़े प्रेम और प्रसन्नता से बिताये. एक समय कोवलन पुहार की विख्यात नर्तकी माधवी का नृत्य देखने गया और उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो गया. उसने माधवी के लिए 1000 स्वर्ण मुद्राओं का शुल्क चुकाया और उसके साथ सुख से रहने लगा. उसकी पत्नी पतिव्रता कण्णगी ने उसे कई बार वापस आने को कहा किन्तु माधवी के मोहजाल में फँसा कोवलन वापस नहीं लौटा.चिंतामणि
माधवी से उसे मणिमेकलाई नामक एक पुत्र प्राप्त हुआ जो दूसरे तमिल महाकाव्य “मणिमेकलाई” का मुख्य नायक है. 3 वर्ष तक कोवलन माधवी
के साथ भोग-विलास में लिप्त रहा और जब उसका समस्त धन समाप्त हो गया, उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और वो माधवी को त्याग कर वापस कण्णगी के पास लौट आया. इससे व्यथित होकर माधवी अपना पूरा धन लेकर कोवलन के पास आयी और उसे वापस चलने का अनुरोध किया किन्तु कोवलन ने वापस जाने से मना कर दिया. इतिहास बताते हैं कि माधवी उसके पश्चात कई वर्षों तक एकाकी रही और उसके पश्चात उसने बौद्ध धर्म अपना लिया और सन्यासन बन गयी.चिंतामणि
नेडुंजेलियन
अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध था और उसने कभी भी किसी के साथ भी अन्याय नहीं किया था. उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि जाकर देखे और अगर उस व्यक्ति के पास रानी का पायल मिले तो उसे मृत्यु-दंड देकर वो पायल वापस ले आएं.
चिंतामणि
उधर कोवलन का सारा धन समाप्त हो चुका
था इसी कारण उसने मदुरई जाकर नया व्यवसाय करने का निश्चय किया. अपनी भार्या कण्णगी को लेकर वो मदुरई की ओर चल पड़ा. मार्ग में उसकी भेंट एक वृद्ध साध्वी से हुई और उसी के मार्गदर्शन में तीनों अत्यंत कष्ट सहते हुए मदुरई नगर पहुँचे. वहाँ पहुँचने पर कोवलन और कण्णगी ने साध्वी से भरे मन से विदा ली और एक ग्वाले के घर में शरण ली. अगले दिन कण्णगी ने कोवलन को अपने एक पैर का रत्नों से भरा पायल दिया और उससे कहा कि इस पायल को बेच कर कुछ स्वर्ण ले आये और अपना व्यवसाय प्रारम्भ करे.चिंतामणि
उसकी पायल लेकर कोवलन नगर में चला गया और वहाँ पहुँच कर राजकीय जौहरी को उसने पायल दिखाया और कहा कि वो उसे बेचना चाहता है.
उस नगर की रानी के पास बिलकुल उसी प्रकार की पायल थी जो चोरी हो गयी थी. जौहरी ने समझा कि ये वही चोरी किया पायल है और इसकी खबर उसने वहाँ के राजा “नेडुंजेलियन” को दी. नेडुंजेलियन अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध था और उसने कभी भी किसी के साथ भी अन्याय नहीं किया था. उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि जाकर देखे और अगर उस व्यक्ति के पास रानी का पायल मिले तो उसे मृत्यु-दंड देकर वो पायल वापस ले आएं. सैनिकों ने जब इतना कीमती पायल कोवलन के पास देखा तो राजा की आज्ञा के अनुसार उन्होंने बिना कोवलन का पक्ष सुने उसका वध कर दिया और वो पायल लेकर वापस राजा को सौंप दिया जिसे राजा ने अपनी रानी को दे दिया.चिंतामणि
“हे देवता!
अगर मैंने कभी मन और वचन से कोवलन के अतिरिक्त और किसी का ध्यान ना किया हो और अगर मैं वास्तव में पतिव्रता हूँ, तो तत्काल ब्राम्हणों, बालक-बालिकाओं और पतिव्रता स्त्रियों को छोड़ कर पूरा नगर भस्म हो जाये.” ऐसा कहते हुए उसने अपने हाथ में पड़े पायल को भूमि पर पटका जिससे प्रचंड अग्नि उत्पन्न हुई और देखते ही देखते पूरा मदुरई नगर जलकर भस्म हो गया.
चिंतामणि
जब कोवलन की मृत्यु का समाचार
कण्णगी को मिला तो वो क्रोध में राजा के भवन पहुँची और उसे धिक्कारते हुए कहा कि “हे नराधम! तूने बिना सत्य जाने मेरे पति को मृत्यु दंड दिया. किस आधार पर तू अपने आप को न्यायप्रिय कहता है?” इसपर राजा ने कहा “हे भद्रे! मेरे राज्य में चोरों को मृत्यु दंड देने का ही प्रावधान है. तुम किस प्रकार कहती हो कि तुम्हारा पति चोर नहीं था. उसके पास मेरी पत्नी के पायल प्राप्त हुए. क्या तुम्हारे पास कोई प्रमाण है कि वो पायल उसने नहीं चुराया?” कण्णगी ने क्रोधित स्वर में कहा “रे मुर्ख! वो पायल मेरी थी जिसे मैंने अपने पति को बेचने को दिया था.” ऐसा कहकर उसने अपना दूसरा पायल राजा को दिखाया. राजा ने घबराकर रानी से उस पायल को मँगवाया. ध्यान से देखने पर पता चला कि वो पायल कण्णगी के पायल से ही मिलता था, रानी के पायल से नहीं. रानी के पायल में मोती भरे थे जबकि कन्नागी का पायल रत्नों से भरा था. राजा को अपनी भूल का पता चला और मारे शर्म और दुःख के उसने कण्णगी के समक्ष ही आत्महत्या कर ली.चिंतामणि
इतने पर भी
कण्णगी का क्रोध काम नहीं हुआ और उसने अत्यंत क्रोधित हो कहा “हे देवता! अगर मैंने कभी मन और वचन से कोवलन के अतिरिक्त और किसी का ध्यान ना किया हो और अगर मैं वास्तव में पतिव्रता हूँ, तो तत्काल ब्राम्हणों, बालक-बालिकाओं और पतिव्रता स्त्रियों को छोड़ कर पूरा नगर भस्म हो जाये.” ऐसा कहते हुए उसने अपने हाथ में पड़े पायल को भूमि पर पटका जिससे प्रचंड अग्नि उत्पन्न हुई और देखते ही देखते पूरा मदुरई नगर जलकर भस्म हो गया. मदुरई नगर के भस्म होने के बाद भी जब वो अग्नि शांत नहीं हुई तो स्वयं देवी मीनाक्षी (दक्षिण भारत में इन्हे देवी पार्वती का रूप माना जाता है) प्रकट हुई और उन्होंने कण्णगी का क्रोध शांत किया.चिंतामणि
सती कण्णगी को दक्षिण भारत,
विषेकर तमिलनाडु में देवी के रूप में पूजा जाता है और उसे “कण्णगी-अम्मा” के नाम से जाना जाता है. पुहार और मदुरई में इनकी गणना देवी मीनाक्षी के अवतार के रूप में भी की जाती है. यही नहीं, श्रीलंका में भी इनकी बड़ी मान्यता है… !चिंतामणि
(मंजू काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से
ताल्लुक रखती हैं. इनका बचपन प्रकृति के आंगन में गुजरा. पिता और पति दोनों महकमा-ए-जंगलात से जुड़े होने के कारण, पेड़—पौधों, पशु—पक्षियों में आपकी गहन रूची है. आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं. आप ओडिसी की नृतयांगना होने के साथ रेडियो-टेलीविजन की वार्ताकार भी हैं. लोकगंगा पत्रिका की संयुक्त संपादक होने के साथ—साथ आप फूड ब्लागर, बर्ड लोरर, टी-टेलर, बच्चों की स्टोरी टेलर, ट्रेकर भी हैं. नेचर फोटोग्राफी में आपकी खासी दिलचस्पी और उस दायित्व को बखूबी निभा रही हैं. आपका लेखन मुख्यत: भारत की संस्कृति, कला, खान-पान, लोकगाथाओं, रिति-रिवाजों पर केंद्रित है.)