जो कंटेंट अच्छा होता है और जिसमें मानवीय भावनाएं, संवेदनाएं और सौहार्द के संदेश की सीख होती है, उसे वायरल होने में वक्त नहीं लगता। पिछले दिनों ऐसे ही एक वीडियो पर नज़र गई, जिसकी ऑर्गेनिक रीच 1 मिलियन से ज्यादा हो चुकी है और 5 हजार से ज्यादा टिप्पणियां और 15 हजार से ज्यादा लाइक आ चुके हैं। यह वीडियो है उत्तराखंड के एक ऐसे शख्स की कहानी का जो कि किसान आंदोलन में आंदोलनरत किसानों के फ्री में बाल काट रहा है और दाड़ी बना रहा है। इस श़ख्स की कहानी से पहले इस वीडियो को बनाने वाले पत्रकार आशुतोष पांडे की जुंबानी ‘ ‘शौक़-ए-दीदार अगर है, तो नज़र पैदा कर’।
मैं जब किसान आंदोलन में गया, तो वहां मंच माला और माइक के माध्यम से किसान नेता अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे थे। कहीं कुश्ती चल रही थी, तो कहीं मोदी विरोधी नारे लग रहे थे। इन सबके बीच मुझे एक शख्स दिखा, जिसका नाम शहनवाज था। जो एक कुर्सी रखकर आंदोलनकारी किसानों की दाड़ी बना रहा था। कड़ाके की ठंड थी। उसके पास संसाधन के नाम पर सिर्फ एक कुर्सी…सेविंग किट और एक शीशा था..वह मुस्कराते हुए आंदोलनकारी किसानों की दाड़ी बना रहा था और बाल काट रहा था। उसे तल्लीनता देखकर मुझे लगा कि इससे बात करनी चाहिए। मैंने उससे बात करते हुए उसके वीडियो को अपने फेसबुक से लाइव कर दिया, जो वायरल हो जाएगा, उस वक्त मुझे भी इसका अंदाजा नहीं था। मुझे ख़ुशी है कि इसके बाद तमाम यूट्यूबर और मीडिया संस्थानों के रिपोर्टरों ने मुझसे शहनवाज का नंबर मांगा…अब मैं देख रहा हूं कि उसकी उस कुर्सी के ऊपर किसान आंदोलन का बैनर लग चुका है और दुकान पहले से ज्यादा सज गई है। कई लोग मदद के लिए आगे आए हैं…
अब सुनिए इस नौजवान की कहानी..
शहनवाज उत्तराखंड के गदरपुर से हैं। किसान आंदोलन में आंदोलनकारी किसानों को समर्थन देने के लिए डटे हैं। आंदोलनरत किसानों के फ्री में बाल काट रहे हैं और दाड़ी बना रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने आंदोलन में अपनी सेवा देने के लिए एक टेंट वाली कुर्सी रखकर लोगों की दाड़ी और बाल बनाना शुरू किया था। उनके एक ग्राहक ने जब यह देखा तो उनके खाते में दो हजार रुपये ट्रांसफर किए और बोला कि जाकर एक कुर्सी ले आओ और पैसे कम पड़े तो बता देना। उसके बाद वह दिल्ली से सेविंग वाली कुर्सी लेकर आए।
शहनवाज कहते हैं कि जब गदरपुर से 25 दिसंबर 2020 को किसान आंदोलन के लिए दिल्ली आ रहे थे। उससे पहले मेरे घर के पास वाले ही गुरुद्वारे में बैठक हुई थी। मैं अपने काम के लिए वहीं से निकल के जा रहा था। उनमें से कुछ लोगों ने मुझसे कहा- ‘तुम भी चलोगे।’ मैंने कहा- ‘क्यों नहीं चलेंगे। तुम हमसे अलग थोड़ी हो।’ लेकिन मैं 25 तारीख को नहीं आ पाया क्योंकि उस वक्त व्यस्त था। फिर 1 जनवरी को दूसरी ट्रोली आई, तो मैं उसके साथ आया। उसके बाद से खुद को यहां समर्पित कर दिया। शहनवाज कहते हैं- देखिए कानून तो सरकार को वापस लेना पड़ेगा, क्योंकि यह आंदोलन जन आंदोलन बन चुका है। आप भीड़ देख ही रहे हैं। उनका कहना है कि अपने हाथ का हुनर है, तो सेवा करने में क्या दिक्कत है।
(पत्रकार ललित फुलारा के फेसबुक वॉल से साभार)