अमर प्रेमकथा राजुला मालुशाही पर आधारित नाटक ‘सुनपत शौके की च्येली’ का मंचन

‘गढवाली कुमाऊनी जौनसारी अकादमी’ दिल्ली सरकार के तत्वावधान मे ‘मस्ती की पाठशाला’ नाटक कार्यशाला का आयोजन 22 मई से 22 जून के बीच दिल्ली के विभिन्न स्कूलों मे किया गया. कार्यशाला मे तैयार नाटकों का मंचन 19 से 22 जून के मध्य दिल्ली के विभिन्न स्कूलों में किया गया.

इसी श्रंखला मे लेखिका एंव नाट्य कर्मी मीना पाण्डेय द्वारा निर्देशित नाटक “सुनपत शौके की च्येली”‘ को दर्शकों व कला विशेषज्ञों की विशेष सराहना मिली. नाटक का सह निर्देशन लोक कलाकार भुवन गोस्वामी ने किया. गिरीश बिष्ट ‘हँसमुख’ की इस कहानी का नाट्य रूपान्तरण भी मीना पाण्डेय द्वारा किया गया.

यह कहानी कुमाऊँ की सुप्रसिद्ध लोक कथा ‘राजुला मालुशाही’ की प्रेमगाथा पर आधारित है, जिसे इस नाटक के माध्यम से एक नया रचनात्मक विस्तार देने की कोशिश की गई है.

मीना पाण्डेय ने बताया- “एक लोक कथा जिसका प्रचलित संस्करण लेखक की कहानी से अलग है उसके नाट्य रुपांतरण मे सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि एक लोक कथा जिससे लोक भावनाएं जुड़ी होती हैं, उसे  संतुलित दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत किया जा सके जिससे लोक कथा व लेखक की दृष्टि दोनों के साथ न्याय किया जा सके.”

रंगकर्मी राकेश शर्मा जी ने नाटक के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा- “हम जानते हैं कि रंगमंच यह जानने मे सहायक है कि हम कौन हैं? और क्या बन सकते हैं? मुझे इसी प्रक्रिया से कार्य करती दिखी श्रीमती मीना पांडे. इस कार्यशाला में उन्होंने एक कुमाऊँनी नाटक का निर्देशन किया जिसमे भाग लेने वाले बच्चे उत्तराखंडी ना होकर अन्य प्रदेशों से थे. मुझे यह कहते कोई दुविधा नही है कि ये बच्चे हमारी आज की पीढी से बेहतर कुमाऊँनी बोल रहे थे, मीना जी इस कार्यशाला मे बच्चों को यह समझाने में सफल रही कि जो आप जानते हो और जो आप नही जानते हो उसे पूरी ईमानदारी से स्वीकारो, बच्चे उसे स्वीकारते दिखे. ध्वनि प्रभाव व वेश भूषा से नाटक ने दर्शको को बाँध कर रखा.”

वहीं वरिष्ठ कवि रघुबरदत्त शर्मा ‘राघव’ ने नाटक देखने के बाद अपने विचार रखते हुए कहा “अभिभूत हूँ उत्कृष्ट निर्देशिका के रुप में मीना पाण्डेय का कर्म काैशल देखकर…वास्तव में गिरीश बिष्ट हंसमुख की कथा “सुनपत शौके की च्येली” का जितना सुंदर नाट्य रुपांतरण कर अपने सहयोगी भुवन गोस्वामी के साथ थियेटर तक इन्होनें उतारा है, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है…वस्तुतः गैर पहाड़ी बच्चों के मुख में इस पहाड़ी प्रेम गाथा के शब्दों को डालना इतना आसान नही था जितना मीना पांडेय ने करके दिखा दिया .”

वहीं लोकगायक शिव दत्त पंत ने कहा- “सुनपत शौके की च्येली” कुमाऊनी नाटक की बहुत सुंदर प्रस्तुति स्कूल के बच्चों द्वारा दी गई, कुमाऊनी बोली में सुंदर डायलॉग सुनने को मिला और अपने उत्तराखंड की संस्कृति की सुंदर झलक देखने को मिली.”

रंगमंच विशेषज्ञ डा. सुवर्ण रावत जी ने भी नाटक के दृश्य संयोजन की सराहना की. नाटक मंचन मे तकनिकी सहयोग दिया कैलाश पाण्डेय ने तथा वेशभूषा व मेकअप में सुनील बढ़ोनी का सहयोग रहा.

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