- डॉ. मोहन चंद तिवारी
पितृ पक्ष के समाप्त होते ही कल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 7 अक्टूबर 2021 से शारदीय नवरात्र नवरात्र शुरू हो रहे हैं. नवरात्रों के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है.
इस बार नवरात्र में चतुर्थी तिथि का क्षय होने से शारदीय नवरात्र आठ दिन के ही होंगे. इन नौ दिनों में नवदुर्गा के अलग अलग स्वरूपों की पूजा अर्चना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और सभी कष्टों का निवारण होता है.ज्योतिष
नवरात्र 2021 की तिथियां
घटस्थापना तिथि : 7 अक्टूबर 2021
द्वितीया तिथि : 8 अक्टूबर 2021
तृतीया व चतुर्थी तिथि : 9 अक्टूबर 2021
पंचमी तिथि : 10 अक्टूबर 2021
षष्ठी तिथि : 11 अक्टूबर 2021
सप्तमी तिथि : 12 अक्टूबर 2021
अष्टमी तिथि : 13 अक्टूबर 2021
नवमी तिथि : 14 अक्टूबर 2021
दशमी तिथि : 15 अक्टूबर 2021
ज्योतिष
देवी भागवत पुराण के अनुसार आश्विन मास के शारदीय नवरात्र में आदिशक्ति प्रकृति परमेश्वरी की पूजा-अर्चना करने व व्रत-उपवास रखने से मनुष्य पर मां जगदम्बा की कृपा सम्पूर्ण वर्ष बनी रहती है
जीवन में ऋद्धि-सिद्धि ,सुख-शांति, धन- समृद्धि मान-सम्मान, यश-कीर्ति की प्राप्ति होती है और मनुष्य का सब प्रकार से कल्याण होता है.भारतीय परंपरा में आश्विन प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर नवमी तिथि तक नौ दिनों तक नवरात्र का महापर्व मनाया जाता है. इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है. कल प्रतिपदा तिथि यानी 7 अक्टूबर को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त है.ज्योतिष
इसी दिन कलश स्थापना के साथ देवी शैलपुत्री की पूजा भी होगी. फिर इसके बाद विभिन्न तिथियों में क्रमशः ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कत्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा होगी.13अक्टूबर को दुर्गा महाष्टमी 14अक्टूबर को महानवमी पड़ेगी. इसके बाद 15अक्टूबर को विसर्जन के साथ नवरात्रपर्व का समापन होगा.
ज्योतिष
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त
देवीपुराण के अनुसार नवरात्र के अवसर पर मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम घट-स्थापना या कलश की स्थापना की जाती है. नवरात्र में कलश स्थापना का खास महत्व होता है.
इसलिए इसकी स्थापना सही और उचित मुहूर्त में ही करनी चाहिए. 7 अक्टूबर को घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 17 मिनट से सुबह 7 बजकर 7 मिनट तक का है. इसी समय घटस्थापना करने से नवरात्र फलदायी होते हैं.ज्योतिष
क्यों की जाती है घट स्थापना?
नवरात्र में घट स्थापना के द्वारा ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का आह्वान करने का विधान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार घट में इस सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा का निवास है. घटस्थापना से सभी देवी-देवताओं की पूजा हो जाती है और इसी कारण से नवरात्र में घटस्थापना को इतना महत्व दिया जाता है. कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं व कलश के मध्य में मातृशक्तियां निवास करती हैं. घट स्थापना के अवसर पर जल के देवता वरुण,
चारों वेदों, तीर्थों, नदियों, समुद्रों आदि के साथ देवियों एवं देवताओं का आह्वान किया जाता है. घट स्थापना का एक पर्यावरण वैज्ञानिक निहितार्थ यह भी है कि नवरात्र मूलतः भारत की प्रकृति पूजा का वार्षिक महा अभियान है. इसीलिए भारत के प्रकृति पूजक इस पर्यावरण संरक्षक अभियान की शुरुआत कलश पूजा से करते हैं और विश्वपर्यावरण के मंगल कामना हेतु सबसे पहले ब्रह्मांड स्वरूप घट की अक्षत पुष्प द्वारा प्रतिष्ठा करते हैं. इस अवसर पर निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है-ज्योतिष
“कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रःसमाश्रितः.
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः..
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा.
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथर्वण:..
अंगेश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:.
अत्र गायत्री सावित्री शान्ति: पुष्टिकरी तथा.
आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारका:.
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति..
नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन संनिधिं कुरु.
सर्वे समुद्रा: सरितीर्थानि जलदा नदा:.
आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारका:..”
ज्योतिष
कलश को देवी की शक्ति के
प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि,वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है जिसकी पूजा करने से मनुष्यों को आरोग्य, सुख-समृद्धि प्राप्त होती है और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.ज्योतिष
कलश को हमेशा तांबे, मिट्टी और पीतल के बर्तन में रखना अच्छा होता.कलश में जल इसलिए रखा जाता है क्योंकि जल ही जीवन का मूलाधार है. जिस प्रकार जल निर्मल होता है
उसी प्रकार शक्ति साधक का मन भी निर्मल रहना चाहिए. कलश के सामने स्वास्तिक बनाया जाता है.वह इसलिए कि जीवन की चारों अवस्था बाल्य काल, युवावस्था, प्रौढावस्था और वृद्धावस्था सुखमय हो कर गुजरे. घट स्थापना के उपरांत नवरात्र में मां दुर्गा की नौ दिनों में नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है.ज्योतिष
नवशक्तियों के सायुज्य का पर्व
हर वर्ष शारदीय नवरात्र के
अवसर पर पूरे देश में दुर्गा पूजा का महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.श्रद्धालुजन शक्तिपीठों और देवी के मन्दिरों में जाकर आदिशक्ति भगवती से प्रार्थना करते हैं कि पूरे ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक प्रकोप शान्त हों‚ तरह तरह की व्याधियों और रोगों से छुटकारा मिले, प्राणियों में आपसी वैरभाव समाप्त हो और पूरे विश्व का कल्याण हो. नवरात्र नवशक्तियों के सायुज्य का पर्व है जिसकी एक-एक तिथि में एक-एक शक्ति प्रतिष्ठित रहती है-ज्योतिष
‘नवशक्तिभिः संयुक्तं नवरात्रं तदुच्यते.’
शास्त्रकारों के अनुसार ‘शयन’
और ‘बोधन’ दो प्रकार के नवरात्र होते हैं. ‘शयन’ चैत्र मास में होता है जिसे वासन्तीय नवरात्र कहते हैं और ‘बोधन’ आश्विन मास में होता है जिसे शारदीय नवरात्र कहते हैं. शरद ऋतु देवताओं की रात्रि है इसलिए शारदीय नवरात्र में ‘बोधन’ की पूजा विधि अपनाई जाती है. भागवत पुराण के अनुसार अत्याचारी रावण का वध करने और सीता को उसकी कैद से मुक्त कराने के लिए श्रीराम को जगदम्बा की शरण में जा कर उन्हें जगाना पड़ा तभी से भारत में शारदीय नवरात्र मनाने का प्रचलन शुरू हुआ. अपने सामने नतमस्तक राम को देखकर जगदम्बा ने आशीर्वाद और वरदान देते हुए कहा-ज्योतिष
“हे पुरुषोत्तम राम ! निश्चय ही तुम्हारी जय
होगी.” इतना कहकर वह महाशक्ति राम में विलीन होते हुए उन्हीं में अंतर्हित होकर रह गई. आधुनिक हिन्दी काव्य के प्रमुख स्तम्भ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपनी काव्य कृति ‘राम की शक्ति पूजा’ में इस पौराणिक कथानक का इस प्रकार चित्रण किया है-ज्योतिष
“साधु,साधु, साधक धीर,धर्म-धन धन्य राम!”
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम.
देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर
वामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर.
ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,
मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित.
हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,
दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,
मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर
श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर.
‘होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन.‘
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन.”
– सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘
ज्योतिष
निराला जी ने अपनी इस कृति के माध्यम से अपने समकालीन समाज की संघर्ष की कहानी कही है. उन्होंने श्रीराम को अवतार न मानकर एक वीर पुरुष के रूप में देखा है और यह बताने
का प्रयास किया है कि राम जैसे शौर्य और पराक्रम के महान् प्रतिमान भी रावण जैसे लम्पट, अधर्मी और अनंत शक्ति सम्पन्न राक्षसराज पर विजय पाने में तब तक समर्थ नहीं होते जब तक कि वे शक्ति की आराधना नहीं कर लेते हैं. माँ के आशीर्वाद से ही राम की सेना में महाशक्ति का अविर्भाव हुआ और श्रीराम ने रावण का वध करके माता जानकी को उसके चंगुल से मुक्त किया .ज्योतिष
शारदीय नवरात्र में लगातार नौ दिन देवी भगवती की आराधना करने के बाद दसवें दिन विजयदशमी का वह दिन आता है जब राम ने रावण का वध किया और पुनः अयोध्या में वापस लौटकर रामराज्य की स्थापना की. नवरात्र शारदीय हों या वासन्तीय अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं खास कर भगवान राम के इतिहास के साथ इस का गहरा संबंध है.
उधर वासन्तीय नवरात्र की नवमी तिथि इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है कि इसी दिन सूर्यवंशी भरत राजाओं की राजधानी अयोध्या में स्वयं विष्णु भगवान ने राम के रूप में जन्म लिया. पूरे देश में इस तिथि को रामनवमी के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इधर शारदीय नवरात्र में राम ने आदिशक्ति की आराधना करने के बाद दसवें दिन विजय दशमी को रावण का वध किया. त्रेतायुग से चली आ रही शक्ति पूजन की यह परम्परा नवरात्र के अवसर पर इतना व्यापक रूप धारण कर लेती है कि उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक और पश्चिम में राजस्थान से लेकर पूर्व में गौहाटी तक जितने भी ग्राम‚ नगर और प्रान्त हैं अपनी अपनी आस्थाओं और पूजा शैलियों के अनुसार लाखों करोड़ों दुर्गाओं की सृष्टि कर डालते हैं.ज्योतिष
दरअसल‚ भारतीय सैन्यशक्ति का शौर्यपूर्ण इतिहास साक्षी रहा है कि नवरात्र अयोध्या के सूर्यवंशी भारतजनों का मुख्य पर्व था. ‘तैत्तिरीय आरण्यक’ के अनुसार नवरात्र में अष्टमी के दिन अयोध्या दुर्ग के रक्षक वीर योद्धा -‘उत्तिष्ठत जाग्रत अग्निमिच्छध्वं भारताः.’ के विजयघोष से शस्त्र पूजा करते थे. जब भी देश पर आक्रमण हुआ है अयोध्या दुर्ग के रक्षक भारतवंशी वीरों ने देश रक्षा का अभूतपूर्व इतिहास कायम किया है तभी से नवरात्र के अवसर पर दुर्ग–रक्षिका दुर्गा की पूजा का प्रचलन शुरू हुआ. राष्ट्ररक्षा की इसी भावना से प्रेरित होकर भरतवंशी राजाओं ने वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रों को राष्ट्र सुरक्षा तथा प्रकृति पूजा के अभियान से जोड़ा.
इन नवरात्रों में धरती के प्रकृति विज्ञान को मातृ तुल्य वन्दना करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम आसुरी शक्तियों का संहार करते हैं तथा अपने पराक्रम का परिचय देकर लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करते हैं. यानी राष्ट्र की प्रासंगिकता राष्ट्र राज्य के संचालन मात्र से नहीं मूल्यांकित होती है अपितु राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा और लोक कल्याणकारी नीतियों से भी निर्धारित होती है.ज्योतिष
वस्तुतः,भारत के प्राचीन राष्ट्रवादी चिन्तकों का यह मानना था कि आततायियों और आतंक फैलाने वाले तत्त्वों का सफाया किए बिना कोई भी राष्ट्र सही मायने में ‘राष्ट्र’ कहलाने योग्य ही नहीं है.
संस्कृत साहित्य की एक प्रसिद्ध सूक्ति के अनुसार शस्त्र अर्थात् पराक्रम से संरक्षित राष्ट्र में ही शास्त्रीय और कूटनीतिक बहस प्रासंगिक हो सकती है-ज्योतिष
‘शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे शास्त्रचर्चा प्रवर्तते.’
प्रकृतिवादियों ने इसी पराक्रम से संरक्षित राष्ट्र में पर्यावरण की सुरक्षा भी एक दूसरा आवश्यक तत्त्व जोड़ दिया. प्रकृति पूजा का विचार तन्त्र नवरात्र में एक राष्ट्रीय महोत्सव जैसा रूप इसलिए धारण कर लेता है ताकि पर्यावरण संरक्षण की एक भारतीय परम्परा को चिरन्तन रूप दिया जा सके. इसे देवी पूजा या मर्यादा पुरुषोत्तम राम के
इतिहास से इसलिए जोड़ा गया है ताकि पर्यावरण संचेतना तथा राष्ट्ररक्षा का अर्द्धवार्षिक अभियान व्यक्ति‚ समाज और राष्ट्र इन तीनों को नवीन ऊर्जा प्रदान कर शक्तिमान् बना सके. भारत के प्रकृति उपासकों का पूरी दुनिया को यह संदेश है कि वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रों को महज एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में ही नहीं मनाया जाना चाहिए बल्कि इसे राष्ट्ररक्षा तथा पर्यावरण संरक्षण के एक पखवाड़े के रूप में भी मनाया जाना चाहिए.ज्योतिष
हमारे देश में आज श्रीराम के इस समर्पित भक्ति के आदर्श को धारण करने वालों का अभाव सा दिखता है. भले ही आज माँ की पूजा में बडे-बडे देवियों की मूर्ति की स्थापना की जाती है,
बडे-बडे पंडाल लगाए जाते हैं परंतु माँ तो राम जैसी भक्ति भावना से ही प्रकट होती है. राम का आदर्श लिए बिना शक्ति की आराधना अधूरी है. शक्ति को धारण करने के लिए राम जैसे आस्थावान् और सरल हृदय की आवश्यकता है. आइए, इस नवरात्र पर्व के इस पावन अवसर पर हम समाज में शक्ति को जागृत करने का संकल्प लें और इस देश को आततायियों और भ्रष्टाचारियों से मुक्त करें. सभी देशवासियों को शारदीय नवरात्र की शुभकामना सहित.ज्योतिष
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के
रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित।)