151वीं गांधी जयंती पर विशेष
डॉ. मोहन चंद तिवारी
आज 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की 151वीं जयंती
पूरे देश में राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान की भावना से मनाई जा रही है. मोहनदास कर्मचंद गांधी 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में पैदा हुए थे. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी अमूल्य योगदान और अहिंसा के प्रति उनकी गहन आस्था के कारण उन्हें कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश के अलग-अलग प्रान्तों में अत्यंत श्रद्धा और देशभक्ति की भावना से याद किया जाता है. विश्व को सत्य और अहिंसा का सबसे ताकतवर हथियार देने वाले महात्मा गांधी का चिंतन और जीवन दर्शन न केवल भारत के लिए अपितु पूरी दुनिया के लिए आज भी प्रासंगिक हैं.गहन
बीसवीं शताब्दी की दो महत्त्वपूर्ण घटनाएं मानी जाती हैं. उनमें से एक घटना है परमाणु बम के प्रयोग द्वारा मानव सभ्यता के विनाश का प्रयास और दूसरी घटना है गांधी जी के द्वारा अहिंसा
एवं सत्याग्रह के शस्त्र से मानव कल्याण का विचार. निष्काम कर्मयोग और अनासक्ति भाव की गीता में जो शिक्षा दी गई है, महात्मा गांधी ने उसी शिक्षा को अपने जीवन में उतार कर अहिंसा और सत्याग्रह के शस्त्र से एक ओर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का घोर युद्ध लड़ा तो दूसरी ओर हिन्द स्वराज्य, राम राज्य एवं ग्राम स्वराज्य के चिन्तन से ‘भारतराष्ट्र’ के लोकतांत्रिक स्वरूप को वैचारिक दिशा देने का भी प्रयास किया.गांधी
गांधी भारतराष्ट्र की अस्मिता थे.
भारतीय संस्कृति के वे सर्वश्रेष्ठ प्रवक्ता भी थे. विशाल गांधी वाङ्मय भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व मानवता के लिए अमूल्य धरोहर बन गया है. स्वाभिमान, साहस स्वावलम्बन, अभयता आदि सद्गुणों को उन्होंने अपने जीवन में उतारा. बच्चों और बीमारों के वे सखा थे. वे पुरुषों में महापुरुष, प्राणों में महाप्राण और आत्माओं में महात्मा थे.
गांधी
गांधी चिन्तन की एक खास विशेषता यह है
कि इसने राजनैतिक और धार्मिक विप्लवों के कारण भूली बिसरी भारतीय संस्कृति का पुनरुद्धार किया. धर्म, राष्ट्र, समाज, राज्य आदि के बारे में अंग्रेजों द्वारा जो पश्चिमी ज्ञान भारतवासियों पर थोपा जा रहा था उसके प्रत्युत्तर में हजारों वर्ष प्राचीन भारतीय मान्यताओं को विश्व के समक्ष रखते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि भारत पहले भी जगद्गुरु था और आज भी जगद्गुरु है.भारतीय
महात्मा गांधी भारतराष्ट्र की अस्मिता थे. भारतीय संस्कृति के वे सर्वश्रेष्ठ प्रवक्ता भी थे. विशाल गांधी वाङ्मय भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व मानवता के लिए अमूल्य धरोहर बन गया है. स्वाभिमान, साहस स्वावलम्बन,
अभयता आदि सद्गुणों को उन्होंने अपने जीवन में उतारा. बच्चों और बीमारों के वे सखा थे. वे पुरुषों में महापुरुष, प्राणों में महाप्राण और आत्माओं में महात्मा थे.गांधी चिन्तन की विश्व को सबसे बड़ी देन यह है कि यह समाज में अहंकार, झूठे दम्भ और शक्ति प्रदर्शन की भावना का निर्मूलन करता है तथा सेवा भावना को ही मानव धर्म मानता है.गहन
स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष पूर्ण वर्षों में गांधी जी से प्रेरणा लेकर ऐसे समर्पित हजारों- लाखों देश सेवकों की जमात पैदा हो गई थी जो देश सेवा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार थी. सन् 1921 के वे दिन बताते हैं कि उस समय चोरों- डाकुओं की मनोवृत्ति में भी स्वयमेव साधुता समा गई थी.
गाधी टोपी पहनऩे वालों को लोग पीड़ित जनों का त्राता व जनता का रक्षक मानऩे लगे थे.लोगों ने शराब आदि व्यसनों का त्याग करना शुरु कर दिया था. पहली बार सार्वजनिक जीवन में विशेष कर राजनीतिक क्षेत्र में सचाई,सरलता साधुता तथा सदाचार को महत्त्व दिया जाने लगा.भारतीय
भारतीय राजनीति में गाधी के आगमन से पहली बार राष्ट्र को यह अहसास हुआ कि शक्ति अपने से बाहर नहीं है इसका संचयन अपने भीतर ही किया जा सकता है.उन्होंने देशवासियों से
कहा कि ब्रिटेन के पास अपनी कोई शक्ति नहीं है जिस पर हमारी गुलामी का शासन-भवन टिका है. अपना सहयोग खींच लो यह भवन निराधार होकर गिर जाएगा. इसी प्रयोजन से गांधी जी ने तीन बड़े अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन किए और सत्याग्रह की लड़ाइयां लड़ी.
सत्याग्रह
दरअसल, सदियों के बाद पहली बार हमें गांधी जी ने यह अनुभूति कराई कि मनुष्य केवल रोटी खाकर नहीं जी सकता बल्कि उसकी सांस्कृतिक पहचान भी सम्मान पूर्वक जीने के लिए बहुत जरूरी खुराक है. भारत की मूर्च्छित आत्मा को एक दिन जो अमृत वाणी स्वामी विवेकानन्द ने सुनाई उसे ही गाधी जी ने अपने कर्मयोग के धरातल पर उतारा.
गाधी जी ने धर्म में मानव की श्रद्धा और आस्था को पुनर्जीवित किया और इस संकल्प को मजबूती प्रदान की कि मनुष्य की क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए आत्मा को बेचा नहीं जा सकता. गाधीवाद मूलत:एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जन जागरण है जिसने पश्चिम के संसर्ग से उत्पन्न उपनिवेशवाद, उपभोक्तावाद द्वारा गुलाम बनाने वाली मानसिकता को खारिज किया तथा समाजवाद की अवधारणा वाला एक उदार भारतीय संस्करण प्रस्तुत किया जिसके प्रेरणा स्रोत वेद, उपनिषद्,गीता, रामायण आदि भारत के प्राचीन ग्रन्थ रहे हैं.गहन
गीता के निष्काम कर्मयोग और अनासक्ति भाव से प्रेरित होकर महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्याग्रह के शस्त्र से भारतीय स्वतन्त्रता का युद्ध लड़ा और उसमें वे विजयी भी रहे. इसलिए गीता और गांधी
का चिन्तन आधुनिक युग में ही नहीं प्रत्येक युग में प्रासंगिक है. वस्तुतः गीता और गांधी विश्व सभ्यता को उपहार स्वरूप प्राप्त ऐसे दो प्रकाश स्तम्भ हैं जिनके आलोक में वैश्विक अशान्ति, सामाजिक विप्लव, राजनैतिक भ्रष्टाचार और धार्मिक विसंगतियों का विखण्डन किया जा सकता है.गहन
भारतीय राजनीति में गाधी के आगमन से पहली बार राष्ट्र को यह अहसास हुआ कि शक्ति अपने से बाहर नहीं है इसका संचयन अपने भीतर ही किया जा सकता है.
उन्होंने देशवासियों से कहा कि ब्रिटेन के पास अपनी कोई शक्ति नहीं है जिस पर हमारी गुलामी का शासन-भवन टिका है. अपना सहयोग खींच लो यह भवन निराधार होकर गिर जाएगा. इसी प्रयोजन से गांधी जी ने तीन बड़े अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन किए और सत्याग्रह की लड़ाइयां लड़ी. एक विशाल ब्रिटिश राज्य को पराजित किया और अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए विवश कर दिया.गहन
गांधी जी ने पर्यावरण के प्रति सौ
साल पहले ही वह चिंता व्यक्त की जो वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक है. गांधी जी का यह कथन पर्यावरण के प्रति उनकी चिंता साफ जाहिर करता है कि “प्रकृति के पास सभी की जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं लेकिन वह किसी की लालच पूरी नहीं कर सकता.”
गहन
भारत में शंकराचार्य बौद्धिक विद्वता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध रहे हैं. बुद्ध और महावीर का अहिंसा सिद्धान्त भी सर्वविदित रहा है पर सरलता और साथ ही अपनी बात को कहने की वज्र जैसी दृढता
और उसे कार्य रूप में लाने की क्षमता रखने वाला ऐसा महापुरुष गांधी के अलावा और कहीं भी इतिहास में नजर नहीं आता जिसने अपने आचरण और सादगीपूर्ण विचारों के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन का नेतृत्व किया हो और अहिंसक हो कर देश को आजादी दिलाई हो.गहन
महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ
ही गांधी जी प्रकृति और पर्यावरण के प्रति भी विशेष प्रेम रखते थे. उन्होंने पर्यावरण के प्रति सौ साल पहले ही वह चिंता व्यक्त की जो वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक है.गांधी जी का यह कथन पर्यावरण के प्रति उनकी चिंता साफ जाहिर करता है कि “प्रकृति के पास सभी की जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं लेकिन वह किसी की लालच पूरी नहीं कर सकता.”गहन
भारत इन सब उपकारों के लिए गाधी जी का
सदैव ऋणी ही रहेगा. महात्मा गांधी जी की जन्म जयंती के अवसर पर महान् पुण्यात्मा बापू को कोटि कोटि नमन!!गहन
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)